मरम अल-मसरी की दो कविताएँ...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhq2gLuXfOlWeqB3Dw_sl5UsIXvjrOpcJc99Ho_wf18_Z1Z6JK9ZnouxFolmrPLS1wILkKAFN48PZT0F9z8Jn26zSPQQD6KSekiUliYoMCGPw16ThZid2yqQmhDUJ69ALg1Wm7mTdvQB6M/s320/manoj+patel+translations+-+14.jpg)
मरम अल-मसरी की दो कविताएँ
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhq2gLuXfOlWeqB3Dw_sl5UsIXvjrOpcJc99Ho_wf18_Z1Z6JK9ZnouxFolmrPLS1wILkKAFN48PZT0F9z8Jn26zSPQQD6KSekiUliYoMCGPw16ThZid2yqQmhDUJ69ALg1Wm7mTdvQB6M/s320/manoj+patel+translations+-+14.jpg)
मरम अल-मसरी की दो कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
छोटी पिनों की मदद से
वह जड़ता है अपनी स्मृतियों को
अपने कमरे की
दीवारों पर
उन्हें सुखाने के लिए.
तस्वीरें
फूल
चुम्बन
और प्यार की महक.
कोमल कृतज्ञता से भरी निगाहों के साथ
वे सभी ताकते हैं उसे
क्यूंकि उसने
शाश्वत बना दिया है उन्हें,
लगभग शाश्वत.
:: :: ::
थोड़ी-थोड़ी देर पर
वह खोलता है खिड़कियाँ,
और बार-बार
बंद भी कर देता है उन्हें.
पर्दों के पीछे से उसकी आकृति
खोल देती है उसका राज
दिख जाता है वह आते-जाते हुए
अपने सफ़र पर, दूर और पास.अपने अकेलेपन को संगीत से भरने के लिए
वह चलाता है रेडियो,
पड़ोसियों को झांसा देते हुए
कि ठीक-ठाक है सब.
हम देखा करते थे उसे
सर झुकाए
जल्दी-जल्दी जाते हुए,
और ब्रेड लेकर
उस जगह को लौटते
जहां
कोई उसका इंतज़ार नहीं करता होता था.
:: :: ::
Manoj Patel Translations
No comments:
Post a Comment