प्रोफ़ेसर राबर्ट रीच ने बीते मंगलवार को बर्कले में मारियो सेवियो मेमोरियल लेक्चर के अंतर्गत आकुपाई आन्दोलनकारियों और छात्रों की भारी भीड़ को संबोधित किया. उनके भाषण के कुछ लिपिबद्ध अंश नेट पर मिल गए जिन्हें यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैं आप सभी से धैर्य बनाए रखने की प्रार्थना करता हूँ क्योंकि पिछली आधी सदी के सभी सामाजिक आन्दोलनों की शुरूआत नैतिक गुस्से की एक भावना से हुई है. शुरूआत में चीजें गलत थीं और उस नैतिक गुस्से का विशिष्ट मांगों से मिलन बाद में हुआ.
कुछ लोगों का कहना है कि अब हम शिक्षा पर खर्च को बर्दाश्त नहीं कर सकते, एक राष्ट्र के रूप में अब हम ग़रीबों को सामाजिक सेवाएं नहीं प्रदान कर सकते... यह सच कैसे हो सकता है जबकि इस समय हम इतने दौलतमंद हैं जितने कि पहले कभी नहीं रहे? पिछले तीन दशकों में इस अर्थव्यवस्था का आकार दूना हो गया है मगर ज्यादातर अमेरिकियों को कोई फायदा नहीं हुआ है. अमेरिका में सारी संपत्ति कुछ थोड़े से लोगों के हाथों में केन्द्रित होती जा रही है. ऐसा इस वजह से नहीं हुआ है कि अमीर लोग बाक़ी जनता के मुकाबले अचानक अधिक काबिल और उत्पादक हो गए हैं. इसका कारण यह है कि किसी न किसी तरीके से खेल के नियम अमीरों के पक्ष में हो गए हैं. नतीजा यह हुआ कि उन्हें और ताकत मिली जिससे वे नियमों को फिर से अपने पक्ष में लिख सकें.
आमदनी और धन-दौलत के संकेन्द्रण की समस्या... एक ऎसी शिक्षा व्यवस्था जो अब अधिकाँश नौजवानों को मयस्सर नहीं रह गई है... मूल समस्या यह है कि अमेरिका में अब हम समान अवसर खोते जा रहे हैं. हम उस नींव के पत्थर को ही गंवाते जा रहे हैं जिसपर इस देश और हमारे लोकतंत्र की बुनियाद डाली गई थी.
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Manoj Patel
yeh baat America se zyada sach aur lagu Hindustan me hai
ReplyDeleteआभार मनोज जी , इस विचारोतेजक लेख के लिए !
ReplyDeleteएक भयानक सच .
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