Friday, May 10, 2013

डान सोशिउ : चीन जितनी बड़ी

रोमानियाई भाषा के कवि डान सोशिउ की एक कविता... 

चीन जितनी बड़ी  : डान सोशिउ 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

और हम बैठ गए पत्थर की गीली बेंचों पर 
पुराने अखबार दबाए अपने चूतड़ों के नीचे 
हम में से एक ने कहा सुनो मेरी सचमुच बड़ी इच्छा है 
सिगरेट की ठूँठों से अपने लिए एक माला बनाने की 

वह '95 का कोई दिन था 
क्योंकि दूसरी बोतल खाली करने के बाद 
हमने उसे टिका दिया था पहली वाली के ऊपर 
और गिरी नहीं थी वह बोतल 

फिर एक लड़की आ गई थी वायलिन लिए हुए 
सिर्फ एक ही धुन आती थी उसे 
और उसने दो बार बजाया था उसे हमारे लिए 

ऊब, चीन जितनी बड़ी किसी ने कहा था 
चलो चमकाकर उन्हें लटका लेते हैं अपनी गर्दनों में किसी ने कहा था 
                           :: :: ::

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(11-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  2. शानदार काव्य .....अद्भुत अनुवाद !

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  3. "चीन जितनी बड़ी ऊब" यह पदबंध ही काफ़ी है, इसे स्मृति में सुरक्षित रखने के लिए.

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  4. अपनी ऊब को बड़ी कुशलता से शब्द दिए हैं कवि ने .........सुन्दर अनुवाद ।

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