Sunday, May 5, 2013

ऊलाव हाउगे : रोड रोलर

उलाव हाउगे की एक और कविता... 

रोड रोलर  : ऊलाव हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मोड़ पर वह मुनासिब चेतावनी देता है तुम्हें, 
नीम रौशनी में आता है तुम्हारी ओर, 
सुलगते सींग 
उसके माथे से झिलमिलाते हुए -- 
आता है बोझिल, साधिकार आता है लुढ़कते हुए 
उस डामर पट्टी को बराबर करते जिस पर चलना ही है तुम्हें. 

हर किसी को बने ही रहना है डामर पट्टियों पर, 
प्रसूति गृह से शवदाहगृह तक दौड़ती 
कन्वेयर बेल्टों पर. 
                     :: :: :: 

4 comments:

  1. हर किसी को बने ही रहना है डामर पट्टियों पर ....प्रभावशाली व्यंग्य । सुन्दर अनुवाद ।

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  2. बहुत अच्छी कविता। इस दुनिया और जिन्बदगी के बहुत अच्छे प्रतीक में बदल गया है ्रोड रोलर

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  3. वाह....चंद शब्दों में समेट दी ज़िंदगी..बेहद उम्दा!!

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  4. आज की ब्लॉग बुलेटिन देश सुलग रहा है... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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