Friday, August 12, 2011

ईमान मर्सल : अमीना

ईमान मर्सल 1966 में मिस्र की पैदाइश, 1998 में आधुनिक अरबी कविता पर काहिरा विश्वविद्यालय से डाक्टरेट, कनाडा के एक विश्वविद्यालय में अध्यापन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ हाई स्कूल से ही प्रकाशित होने लगी थीं. अब तक कुल चार कविता-संग्रह, कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी, हिब्रू, फ्रेंच, जर्मन आदि भाषाओं में भी हो चुका है. 


अमीना : ईमान मर्सल 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

तुम फोन पर बीयर लाने के लिए कहती हो 
उस स्त्री के आत्मविश्वास के साथ जो तीन भाषाएँ जानती है 
और जो शब्दों को बुन सकती है अप्रत्याशित सन्दर्भों में. 
सुरक्षा का ऐसा एहसास तुमने कहाँ से पाया
जैसे कि कभी छोड़ा ही नहीं तुमने अपने बाबुल का घर ? 
इस विनाशकता को भड़काती क्यों है तुम्हारी मौजूदगी 
जिसके पीछे कोई इरादा नहीं, 
यह गंभीरता 
जो मेरी इन्द्रियों को मुक्त करती है उनके अंधेरों से ? 
मैं करूँ भी तो क्या  
जब हमारा साझे का होटल का कमरा मुझे पेश कर रहा हो 
एक सम्पूर्ण दोस्त 
सिवाय इसके कि मैं गोला बना लूं अपने अपरिष्कृत तौर तरीकों का
और फेंक दूं उसके सामने अपने द्वारा बरते गए गंवारूपन की तरह ? 

चलो चलो, मस्त रहो.
मैं इंसाफपसंद हूँ. 
तुम्हें कमरे की आधे से भी ज्यादा आक्सीजन लेने दूंगी 
इस शर्त पर कि तुम मुझे तुलनात्मक निगाहों से नहीं देखोगी, 
बीस साल बड़ी हो तुम मेरी माँ से 
और पहनती हो रंग-बिरंगे कपड़े 
कभी बूढ़ी नहीं होने वाली तुम. 

मेरी सम्पूर्ण दोस्त, 
अब तुम चली क्यों नहीं जाती.
क्या पता कि मैं खोलूँ धूसर आलमारियाँ 
और पहन कर देखूं तुम्हारी नए ढंग की चीजों को.
तुम जाती क्यों नहीं
कमरे की सारी आक्सीजन मेरे लिए छोड़कर. 
तुम्हारी गैरहाजिरी का शून्य मुझे प्रेरित कर सकता है 
पछतावे में अपने होंठ काटने के लिए 
देखते हुए तुम्हारा टूथब्रश     
चिरपरिचित... और गीला. 
                    :: :: :: 

3 comments:

  1. बहुत सशक्त कविता... दिल में जोश भरती हुई सी...

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  2. ek stree ka aatmvishvaas aksar purushon ki pareshani ka sabab ban jaata hai. sadhuvad.

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  3. sundar, dil ko chhoone valaa anuvaad..

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