'उसने कहा था' के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज सल्वाडोर डाली के कोट्स...
उसने कहा था :सल्वाडोर डाली
(अनुवाद : मनोज पटेल)
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैं धूम्रपान नहीं करता इसलिए मैनें मूंछें बढ़ाने का फैसला किया -- मूंछें बढ़ाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है.
परिपूर्णता से मत डरो - वह तुम कभी हासिल नहीं कर पाओगे.
एक खूबसूरत औरत वह है जो तुम्हें घटिया समझे और जिसकी कांख में बाल न हों.
मैं नशीली दवाएं नहीं लेता. मैं खुद ही नशीली दवा हूँ.
छः साल की उम्र में मैं खानसामा बनना चाहता था और सात साल की उम्र में नेपोलियन. तबसे मेरी महात्वाकांक्षा लगातार बढ़ती ही जा रही है.
भ्रम का निवारण नहीं, उसे फैलाना ज्यादा जरूरी है.
हर सुबह जागने पर मुझे फिर से एक परमानंद का एहसास होता है : सल्वाडोर डाली होने का एहसास.
एक सच्चा कलाकार वह नहीं है जो प्रेरित है, बल्कि वह है जो दूसरों को प्रेरित करता है.
मुझमें और किसी पागल में इकलौता अंतर यह है कि मैं पागल नहीं हूँ.
कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं संतुष्टि की अधिक खुराक से मर जाऊंगा.
हमेशा से मेरे प्रभाव का रहस्य यही रहा है कि वह रहस्य ही बना रहा.
हशीश सभी को लेना चाहिए, मगर सिर्फ एक बार.
सफलता का थर्मामीटर सिर्फ विक्षुब्ध लोगों की ईर्ष्या है.
सुन्दरता या तो खाने लायक हो या फिर हो ही न.
जो होने लायक है, उसका कितना कम होता है.
जो किसी की नक़ल नहीं करना चाहते, वे खुद भी कुछ बना नहीं पाते.
जब मैं चित्र बनाता हूँ, दहाड़ें मारता है समुद्र. बाक़ी लोग छपछपाते हैं गुसलखाने में.
प्यार करना और नष्ट हो जाना बेहतर है बजाय हर हफ्ते चालीस किलो कपड़ा धुलने से.
कोई चीज या तो आसान होती है या नामुमकिन.
मैं अजीब नहीं हूँ, मैं तो बस सामान्य हूँ.
अतिशयोक्ति ही वह इकलौती चीज है जो दुनिया में कभी भी पर्याप्त नहीं हो पाएगी.
:: :: ::
बरसों पहले कभी डोली के बारे में पड़ा था पर समय के साथ बिसर गया था...उस आदमी में कुछ ख़ास ......बहुत कुछ. ख़ास था.......आप फिर से वंहा ले गए ...शुक्रिया
ReplyDeleteशानदार, सचमुच
ReplyDeleteजो मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई वो ये...
ReplyDeleteप्यार करना और नष्ट हो जाना बेहतर है बजाय हर हफ्ते चालीस किलो कपड़ा धुलने से
'भ्रम का निवारण नहीं, उसे फैलाना ज्यादा जरूरी है.'
ReplyDeleteइतना प्रखर व्यंग कि व्यंग न होने के भ्रम हो !
सशक्त और बेहद प्रभावशाली कविता !
आभार मनोज ,आपके शोध और प्रस्तुति के लिए !
मनोज भाई...ये तो शरीर काटकर कविता के अंश दिखानेवाली अनोखी और उदास कर देनेवाली अनुभुती है.शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन.
ReplyDeleteशेषनाथ
behtareen....:)
ReplyDelete