Tuesday, September 6, 2011

फदील अल-अज्ज़वी : अगर कविता

आज एक बार फिर से फदील अल-अज्ज़वी की कविता...



अगर कविता : फदील अल-अज्ज़वी 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

या रब,
अगर तुमने इंसान को एक हाथ 
और तीन टांगों वाला बनाया होता,  
क्या कहा होता वनमानुषों ने ?
अगर तुमने नत्थी कर दी होतीं लम्बी पूँछें हमारे पिछवाड़े, 
कैसे नाचते हम दावतों में ?
अगर तुमने पंख दिए होते हमें उड़ने के लिए, 
क्या करते हम अपने पासपोर्टों का ? 
अगर तुमने अदृश्य कर दिया होता हमें, 
भेदिए किन पर लिखते अपनी रपट ?
अगर तुमने नौ उंगलियाँ ही बख्शी होतीं हमें, 
दस तक कैसे गिन पाते हम ? 
अगर तुमने लोहे के बनाए होते हमारे बदन, 
कैसे लड़ते हम अपने युद्ध ? 
अगर हमारी नाक की जगह चोंच लगा दी होती तुमने, 
कैसे चूमते हम लड़कियों को ? 
अगर तुम राज करते होते हम पर, 
क्या करते हम अपने हुक्मरानों का ? 
अगर सौंप दूं तुम्हें मैं यह कविता 
तुम क्या जोड़ोगे इसमें भला ? 
अगर...
अगर...
अगर...
या रब !
                    :: :: :: 

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