आज एक बार फिर से फदील अल-अज्ज़वी की कविता...
अगर कविता : फदील अल-अज्ज़वी
(अनुवाद : मनोज पटेल)
या रब,
अगर तुमने इंसान को एक हाथ
और तीन टांगों वाला बनाया होता,
क्या कहा होता वनमानुषों ने ?
अगर तुमने नत्थी कर दी होतीं लम्बी पूँछें हमारे पिछवाड़े,
कैसे नाचते हम दावतों में ?
अगर तुमने पंख दिए होते हमें उड़ने के लिए,
क्या करते हम अपने पासपोर्टों का ?
अगर तुमने अदृश्य कर दिया होता हमें,
भेदिए किन पर लिखते अपनी रपट ?
अगर तुमने नौ उंगलियाँ ही बख्शी होतीं हमें,
दस तक कैसे गिन पाते हम ?
अगर तुमने लोहे के बनाए होते हमारे बदन,
कैसे लड़ते हम अपने युद्ध ?
अगर हमारी नाक की जगह चोंच लगा दी होती तुमने,
कैसे चूमते हम लड़कियों को ?
अगर तुम राज करते होते हम पर,
क्या करते हम अपने हुक्मरानों का ?
अगर सौंप दूं तुम्हें मैं यह कविता
तुम क्या जोड़ोगे इसमें भला ?
अगर...
अगर...
अगर...
या रब !
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