इस ब्लॉग की पहली सालगिरह के मौके पर आज मिलते हैं एक और अरबी कवियत्री मरम अल-मसरी से, 1962 में सीरिया में जन्मी मसरी ने दमिश्क यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी साहित्य की पढ़ाई की है. फ्रेंच और अंग्रेजी पर भी सामान अधिकार रखने वाली मरम अल-मसरी अरबी में कविताएँ लिखती हैं. अरबी पत्रिकाओं में बहुत कम उम्र से ही कविताओं का प्रकाशन, पेरिस में रिहाइश, अब तक तीन कविता-संग्रह प्रकाशित, कविताओं का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. अकेलेपन और हताशा के साथ-साथ शारीरिक आकर्षण, बेवफाई, विवाहेतर संबंधों जैसी वर्जनाओं को अपनी कविता की विषय वस्तु बनाती हैं.
मरम अल-मसरी की कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
नमक के कणों की तरह
वे चमके
और गल गए.
इस तरह गायब हुए
वे मर्द
जिन्होनें मुझे प्यार नहीं किया.
:: :: ::
मैं जा रही थी
सीधे
जब तुमने रोक लिया मेरा रास्ता.
ठोकर तो लगी
मगर
गिरी नहीं मैं.
:: :: ::
आईने में झांका मैनें
और देखा
एक स्त्री
संतोष से भरी
चमकीली आँखों
और मीठी शरारत वाली,
और मुझे उससे जलन होने लगी.
:: :: ::
लड़की ने माँगा था लड़के से
एक ख्वाब
मगर उसने एक हकीकत पेश की उसे.
तब से ही
उसने पाया खुद को
एक दुखियारी माँ.
:: :: ::
कैसी बेवकूफी :
जब भी मेरा दिल
सुनता है कोई खटखटाहट
ये खोल देता है अपने दरवाज़े.
:: :: ::
एक पत्नी लौटती है
अपने घर को
एक पुरुष की गंध के साथ.
वह नहाती है,
इत्र छिड़कती है,
मगर कसैली ही बनी रहती है,
पछतावे की गंध.
:: :: ::
बाहर अँधेरे में
मैं ठिठुर रही हूँ ठण्ड से.
तुम
खोलते क्यूं नहीं मेरी खातिर
अपनी कमीज का दरवाज़ा ?
:: :: ::
बहुत सुन्दर और असरदार क्षणिकाएँ ! मरम-अल -मसरी की साफगोई अच्छी लगी ! धन्यवाद मनोज जी !
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत क्षणिकाएं ..
ReplyDeleteआभार
''लड़की ने माँगा था लड़के से
ReplyDeleteएक ख्वाब ''....................!!!
गज़ब की खूबसूरती है,इन क्षणिकाओं में!इतने कम में इतना ज़्यादा कह पाने की कुव्वत कम कवियों में होती है. ब्लॉग की पहली साल गिरह मुबारक!
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई मनोज जी ! मैं पढ़ते-पढ़ते के सृजन के पूर्व ब्लॉग बनाने व लिखने की कल्पना से लेकर इसके चरमोत्कर्ष तक के सफ़र के एक-एक दिन का गवाह और साथी रहा हूँ.मात्र एक वर्ष में 511 लोगों का इस ब्लॉग का साथी बनना और लगभग 64000 लोगों द्वारा visit करना बहुत बड़ी बात है.आपके निष्काम भाव से कर्म करने के प्रयास को सलाम.ईश्वर से दुआ है कि आपको इसी तरह सार्थकता के साथ-साथ सफलता मिलती रहे.
ReplyDeleteबधाई मनोज जी!
ReplyDeleteAdbhut abhivyakti ..........! kotishah dhanyavaad !
ReplyDeleteसभी कविताएँ शानदार ढंग से हम सब को जोड़ लेती है, इसलिए मैं पहली कविता को कुछ ऐसे पढ़ता हूँ -
ReplyDeleteइस तरह गायब हुई
वे औरतें
जिन्होंने मुझे प्यार नहीं किया.
शेषनाथ
sundar....!!sab khwaab hii chaahte hain..haqeekat koi nahin
ReplyDelete