Thursday, September 15, 2011

मरम अल-मसरी : कहाँ से आती हैं यादें

एक बार फिर मरम अल-मसरी...











मरम अल-मसरी की कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)

छोटी जलधाराओं की तरह 
वे दाखिल हुए हमारी ज़िंदगी में  
मगर अचानक 
हम डूब गए उनमें 
और जान नहीं पाए कि
किसने दे दिया हमें 
पानी और नमक 
और छोड़ गया हमारे भीतर 
इतनी कड़वाहट.
:: :: :: 

आखिर कहाँ से आती है यह धूल ?
कहाँ से ?
आप उसपर अपनी हथेली फिराते हैं उसे पोंछने के लिए,
मगर वह फिर लौट आती है हमेशा 
चेहरों, और 
आवाजों की तरह.
आपको लगता है कि वह केवल सतह पर जमती है,
मगर आप पाते हैं कि वह पाट देती है गहराईयों को.

ये यादें कहाँ से आती हैं ?
आखिर कहाँ से आती हैं वे ?
:: :: :: 

हर बार 
जब खोलती हूँ अपना बैग
धूल उड़ने लगती है उससे निकलकर.
:: :: :: 

8 comments:

  1. ''ये यादें कहाँ से आती हैं ?
    आखिर कहाँ से आती हैं ?''....सुंदर अनुवाद !!!

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  2. बहुत सुंदर कविता, भीतर से जोड़ती हुई !

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  3. आखिर कहाँ से आती है यह धूल ?
    कहाँ से ?
    आप उसपर अपनी हथेली फिराते हैं उसे पोंछने के लिए,
    मगर वह फिर लौट आती है हमेशा
    चेहरों, और
    आवाजों की तरह.
    आपको लगता है कि वह केवल सतह पर जमती है,
    मगर आप पाते हैं कि वह पाट देती है गहराईयों को.

    ये यादें कहाँ से आती हैं ?
    आखिर कहाँ से आती हैं वे ?
    :: :: ::

    sundar rachna ..

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  4. किसी को नहीं पता यह यादें कहाँ से आती हैं और कहाँ कहाँ ले जाती हैं ?अच्छा लगा पढ़ कर यह अनुवाद..सुन्दर!

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  5. Yaadon kee dhool paat detee hai dil kee gahraaiyon ko..

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  6. बहुत सुन्दर दोनों रचनाये ...आभार

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  7. मगर अचानक
    हम डूब गए उनमें
    और जान नहीं पाए कि
    किसने दे दिया हमें
    पानी और नमक
    और छोड़ गया हमारे भीतर
    इतनी कड़वाहट.

    bahut achichi ....

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