नाजिम हिकमत की 'रात 9 से 10 के बीच की कविताएँ' से एक और कविता...
रात 9 से 10 के बीच लिखी गई कविताएँ - 4 : नाजिम हिकमत
(अनुवाद : मनोज पटेल)
(पत्नी पिराए के लिए)
4 दिसंबर 1945
अपना वही कपड़ा निकालो जिसमें मैनें तुम्हें पहले पहल देखा था,
सबसे सुन्दर नजर आओ आज,
बसंत ऋतु के पेड़ों की तरह...
अपने जूड़े में वह कारनेशन लगाओ
जो मैनें तुम्हें जेल से भेजा था एक चिट्ठी में,
ऊपर उठाओ अपना चूमने लायक, चौड़ा गोरा माथा.
आज कोई रंज नहीं कोई उदासी नहीं --
कत्तई नहीं ! --
आज नाजिम हिकमत की बीवी को बहुत खूबसूरत दिखना है
जैसे किसी बाग़ी का झंडा...
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"जैस किसी बागी का झंडा"
ReplyDelete"jaise kisi baghee ka jhanda", qurbaanee ke liye kisi ki pratibaddhata ki isase behtar ko'ee misaal nahi ho sakati. shukriya.
ReplyDeleteha ha, itni khoobsoorat biwi!
ReplyDeletehats off !!
ReplyDeleteshandar
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeletekhoobsoorat... behad khoobsoorat
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