मरम अल-मसरी की दो कविताएँ...
मरम अल-मसरी की दो कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
सिर्फ इतना ही
चाहता था वह :
एक घर,
बच्चे
और प्यार करने वाली एक पत्नी.
मगर एक दिन जब वह जागा
तो पाया कि
बूढ़ी हो गई है है उसकी आत्मा.
सिर्फ इतना ही
चाहती थी वह :
एक घर, बच्चे
और प्यार करने वाला एक पति.
एक दिन
वह जागी
और पाया कि
एक खिड़की खोलकर
भाग निकली है उसकी आत्मा.
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आज शाम
एक पुरुष
बाहर निकलेगा
शिकार की तलाश में
अपनी दमित कामनाओं को शांत करने के लिए.
आज शाम
एक स्त्री बाहर निकलेगी
किसी पुरुष की तलाश में
जो उसे
हमबिस्तर बना सके.
आज शाम
मिलेंगे शिकार और शिकारी
और एक हो जाएंगे
और शायद
शायद
बदल लेंगे अपनी भूमिकाएं.
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Manoj Patel Translations, Manoj Patel Blog
उफ...
ReplyDeleteअब क्या कहूँ .....
कुछ कहना ज़रूरी है क्या हर समय? itni achchi kavitaen padhne ke baad kai bar khamosh bhi rehna chahiye...
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