येहूदा आमिखाई...
मेरी नींद : येहूदा आमिखाई
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मेरे दिल की धड़कन हमेशा फिर से ठोंकती है मुझे
और जड़ देती है पलंग से,
और मैं लौट जाता हूँ नींद की चिर परिचित मुद्राओं में :
मेरे घुटने ऊपर की ओर मुड़े हुए जैसा कि
उन्होंने मुझे दफनाया था, या बाहें फैली हुईं जैसे किसी क्रास पर,
या यातायात संचालित कर रहे किसी पुलिस वाले की तरह
एक हाथ ऊपर उठाए और दूसरे हाथ से इशारा करते हुए.
या किसी पुराने यूनानी बर्तन पर बने
एक धावक के रेखाचित्र की तरह.
एक हाथ ऊपर की तरफ मुड़ा और शरीर झुका हुआ.
मैं कहाँ भागा जा रहा हूँ ?
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bahut achchi kavita.
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