जमना हद्दाद लेबनान की प्रसिद्द कवि, अनुवादक एवं पत्रकार हैं. आपका जन्म दिसंबर 1970 में बेरुत में हुआ. प्रतिष्ठित 'अल नहर' अखबार के साहित्यिक-सांस्कृतिक पृष्ठों की सम्पादक के साथ-साथ 'जसद' पत्रिका की भी सम्पादक हैं. सात भाषाओं की जानकार हद्दाद कई भाषाओं में लिखती हैं. कविताओं के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनका तमाम भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है. फिलहाल उनकी यह कविता देखें...
शैतान : जमना हद्दाद
(अनुवाद : मनोज पटेल)
अजनबी, जब मैं बैठी हूँ तुम्हारे सामने
जानती हूँ कि तुम्हें कितना वक़्त लगेगा
हमारे बीच की दूरी तय करने में.
तुम अपनी होशियारी की इन्तेहा पर हो
और मैं अपनी दावत की.
तुम सोच रहे हो कि कैसे शुरू करूँ इस पर डोरे डालना
और मैं,
अपनी संजीदगी के परदे के पीछे से
तुम्हें पहले ही गड़प कर चुकी हूँ.
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अल्टीमेट !
ReplyDeleteशेयर कर रहा हूँ .....
waah!
ReplyDeleteवाह वाह , कमाल है ! बहुत जबरदस्त कविता ! धन्यवाद मनोज जी !
ReplyDeleteपहले ही गड़प कर चुकी हूँ...
ReplyDeleteसुंदर..
क्या बात है......
ReplyDeletevah !!!
ReplyDeleteक्या कहने! एकदम परे, पूर्वानुमान से! अद्भुत!
ReplyDeleteबेहद कमाल की कविता ... पहले ही गड़प कर चुकी हूँ ... वाह
ReplyDeleteबहुत ही शानदार..गड़प
ReplyDeletechoti see kabita kitna kuch kah gayee.
ReplyDeletediwakar ghosh
बहुत खूब... लाजवाब!
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवाह ! गज़ब की कविता है....
ReplyDeletesunder,kavita
ReplyDeleteJust amazing.
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