Friday, September 23, 2011

नरेंद्र मोदी के नाम संजीव भट्ट का खुला पत्र


नरेंद्र मोदी के नाम निलंबित आई पी एस अधिकारी संजीव भट्ट का यह पत्र 15 सितम्बर 2011 के हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ था. 











नरेन्द्र मोदी के नाम निलंबित आई पी एस अधिकारी संजीव भट्ट का खुला पत्र 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

प्रिय श्री मोदी,

मुझे खुशी है कि आपने 'छ करोड़ गुजरातियों' को एक खुला पत्र लिखने का फैसला किया. इसने न केवल आपके दिमाग में झाँकने के लिए मुझे एक खिड़की मुहैया कराई बल्कि उसी माध्यम से आपको कुछ लिख भेजने का अवसर भी दिया. 

मेरे प्रिय भाई, ऐसा लगता है कि आपने माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा विशेष अनुमति याचिका (फौजदारी) संख्या 1088 आफ 2008 नामशः जाकिया नसीम अहसन एवं एक अन्य बनाम स्टेट आफ गुजरात एवं अन्य से उत्पन्न होने वाली फौजदारी अपील संख्या 1765 आफ 2011 में पारित किए गए माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले एवं आदेश की गलत व्याख्या कर ली है. बहुत मुमकिन है कि आपके चुने हुए सलाहकारों ने एक बार फिर आपको गुमराह किया है और परिणामस्वरूप आपसे 'छ करोड़ गुजरातियों' को भी गुमराह करवा दिया है जो आपको अपना निर्वाचित नेता मानते हैं. 

एक छोटे गुजराती भाई की हैसियत से इस निर्णय एवं आदेश का गूढ़ार्थ समझने में आप कृपया मुझे अपनी सहायता करने दें जिसने राजनीतिक वर्णक्रम के कुछ हिस्सों में सुस्पष्ट विद्वेषी आनंद और जश्न का माहौल पैदा कर दिया है. आपके पत्र में कहा गया है कि "उच्चतम न्यायालय के फैसले से एक चीज स्पष्ट है. 2002 के दंगों के बाद मेरे और गुजरात सरकार के खिलाफ निराधार और झूठे आरोपों ने जो खराब माहौल बनाया था, उसका अब खात्मा हो गया है."   

मुझे यह स्पष्ट करने दें कि दूर-दराज से भी माननीय उच्चतम न्यायालय का आदेश कहीं भी यह नहीं कहता कि श्रीमती जाकिया जाफरी द्वारा दायर की गई शिकायत में उल्लिखित आरोप निराधार अथवा झूठे थे. सच तो यह है कि गुजरात नरसंहार के अभागे पीड़ितों को इन्साफ दिलाने की दिशा में माननीय उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय एक बहुत बड़ा कदम है. जैसा कि आप भली भांति जानते हैं, श्रीमती जाफरी इस प्रार्थना के साथ गुजरात उच्च न्यायालय गईं थीं कि उनकी शिकायत को प्रथम सूचना रिपोर्ट के तौर पर दर्ज किया जाए. माननीय गुजरात उच्च न्यायालय ने उनकी यह याचिका खारिज कर दी थी. उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ श्रीमती जाफरी ने माननीय उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी. 

माननीय उच्चतम न्यायालय ने विशेष जांच दल को उनकी शिकायत की जांच करने के लिए निर्देशित किया और बाद में न्यायालय की सहायता कर रहे विद्वान् अधिवक्ता को विशेष जांच दल द्वारा जमा किए गए सबूतों का परीक्षण करने का भी निर्देश दिया. इस लम्बी और मुश्किल कसरत के बाद माननीय उच्चतम न्यायालय ने श्रीमती जाफरी की अपील को न केवल स्वीकार कर विशेष जांच दल को श्रीमती जाफरी की शिकायत को वस्तुतः प्रथम सूचना रिपोर्ट के तौर पर मानने हेतु निर्देशित किया बल्कि विशेष जांच दल को यह भी निर्देशित किया कि वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 (2 ) के तहत रिपोर्ट फ़ाइल करे. आपके और आपके छ करोड़ गुजराती भाईयों और बहनों की सुविधा के लिए मुझे यह बताने की अनुमति दें कि धारा 173 (2 ) की इस रिपोर्ट को आम बोलचाल की भाषा में चार्ज-शीट (आरोप-पत्र) या फाइनल रिपोर्ट कहा जाता है. 

भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय ने श्रीमती जाफरी को जो दिया है वह उससे बहुत-बहुत ज्यादा है जिसकी कि उन्होंने मूल रूप से प्रार्थना की थी. जिस आदेश पर हममें से कुछ लोग झूठा जश्न मना रहे हैं, वह दरअसल बहुत होशियारी से शब्दबद्ध किया हुआ एक ऐसा आदेश है जो 2002 जनसंहार के अपराधियों और उसे सुगम बनाने वालों को उनके हिसाब-किताब के दिन के कुछ कदम और नजदीक ले जाने वाला है. यह झूठी डींग गुजरात की भोली-भाली जनता को गुमराह करने और राजनीतिक तबके में एक फर्जी आत्मविश्वास की भावना को स्थापित करने का एक चतुर प्रयास है. कृपया भरोसा रखें कि जब इस आदेश का वास्तविक आशय समझ में आने लगेगा और न्यायिक प्रभाव लेने लगेगा, तब पूरी तरह से एक अलग तस्वीर हमारे सामने आएगी.  

'छ करोड़ गुजरातियों' में से एक होने की वजह से मैं बहुत दुखी और ठगा हुआ महसूस करता हूँ जब आप जैसे लोग जाने अनजाने में निहित स्वार्थों के लिए गुजरात की जनता को गुमराह करते हैं. एडोल्फ हिटलर के एक नजदीकी सहयोगी और नाज़ी जर्मनी के रिख प्रचार मंत्री पाल जोसेफ गोएबल्स द्वारा प्रतिपादित और व्यवहार में लाया गया सिद्धांत निश्चित रूप से जनसंख्या के अधिकाँश के लिए कुछ समय तक काम कर सकता है. मगर ऐतिहासिक अनुभवों से हम सभी जानते हैं कि गोएबलीय प्रोपेगंडा सभी लोगों को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बना सकता. 

मैं आपके इस एहसास का पूरी तरह से समर्थन करता हूँ कि "नफरत को कभी नफरत से नहीं हराया जा सकता." आपसे बेहतर इस बात को और कौन समझ सकता है जिसने इस प्रदेश की पिछले एक दशक से सेवा की है ; या मुझसे बेहतर जिसने भारतीय पुलिस सेवा में पिछले 23 साल नौकरी की है. 2002 के उन दिनों मुझे भी आपके साथ काम करने का दुर्भाग्य हासिल हुआ था जब गुजरात के विभिन्न स्थानों पर घृणा के नृत्य का निर्देशन और पाप किया जा रहा था. हालांकि मेरे लिए हम दोनों की निजी भूमिकाओं की चर्चा और उनके विस्तृत विवरण को जाहिर करने का यह उचित मंच नहीं है, मुझे पूरा विश्वास है कि हमको पर्याप्त रूप से सशक्त मंच के सामने गुजरात की व्यवहारिक राजनीतिक में घृणा और द्वेष के गतिविज्ञान के अपने ज्ञान को जाहिर करने के भरपूर अवसर मिलेंगे. मैं उम्मीद करता हूँ कि आप और सरकार के भीतर और बाहर के आपके सहयोगी इसके लिए मुझसे और अधिक नफरत नहीं करेंगे. 

मैं आपसे और अधिक सहमत नहीं हो सकता जब आप कहते हैं कि "झूठी बातें फैलाने और गुजरात को बदनाम करने वालों की विश्वसनीयता सबसे निचले स्तर पर आ गई है. इस देश के लोग ऐसे तत्वों पर अब और विश्वास नहीं करेंगे." मगर मेरे प्यारे भाई, लगता है कि आप इस बात को पूरी तरह से गलत समझ रहे हैं कि झूठी बातें कौन फैला रहा है और गुजरात को कौन बदनाम कर रहा है. मेरी समझ से, गुजरात उन बदनसीब पीड़ितों की वजह से नहीं बदनाम हुआ है जो लगातार सत्य और न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बल्कि उन लोगों के घिनौने कृत्यों की वजह से बदनाम हुआ है जिन्होनें राजनीतिक और चुनावी लाभ की फसल काटने के लिए नफरत की खेती की है. कृपया इस पर थोड़ा विचार करें. कभी कभी आत्मावलोकन बहुत फायदेमंद होता है.

"गुजरात की शान्ति, एकता और सामंजस्य के माहौल को और मजबूत करने" के आपके सरोकार और प्रयासों से मैं बहुत गहरे प्रभावित हुआ. आपको और आपके स्वजनों को धन्यवाद कि 2002 के बाद गुजरात बड़े पैमाने की किसी साम्प्रदायिक हिंसा के स्फोटन से मुक्त रहा है.  

 हमारे "छ करोड़ गुजरातियों" के लिए इसकी वजहें बहुत स्पष्ट नहीं होंगी. भारतीय पुलिस सेवा में यह मेरा चौबीसवां साल है. मुझे गुजरात कैडर ऐसे समय में आवंटित हुआ था जब प्रदेश अत्यंत विस्तृत और छिटपुट साम्प्रदायिक हिंसा की तीव्र वेदना से गुजर रहा था. इस आग से बपतिस्मा पाने के बाद से ही मैं आप जैसे लोगों को समझने और उनसे निपटने में लगा हूँ जो घृणा की बांटने वाली राजनीति में संलग्न हैं. यह मेरी पुख्ता राय है कि गुजरात की राजनीति अब उस चरण को पार कर गई है जहां साम्प्रदायिक हिंसा किसी राजनीतिक दल को कोई चुनावी फायदा पहुंचा सकती है क्योंकि गुजरात में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है. 

गुजरात प्रयोगशाला में बांटने वाली घृणा की राजनीति के प्रयोग बहुत सफल रहे हैं. राजनीति के अखाड़े के आप और आप जैसे लोग "छ करोड़ गुजरातियों" के दिलो दिमाग में विभाजन पैदा करने में बड़े पैमाने पर कामयाब हुए हैं. गुजरात में कुछ और साम्प्रदायिक हिंसा के उपाय की जरूरत पहले ही पुरानी पड़ चुकी है. 


हमारे जैसे सांविधानिक लोकतंत्र में राज्य के लिए हर समय और हर परिस्थिति में सद्भावनापूर्वक कार्य करना आवश्यक है. पिछले साढ़े नौ सालों में बहुत से साथी इस गुमराह करने वाले प्रचार का शिकार हुए हैं कि 2002 का गुजरात जनसंहार, 27 फरवरी 2002 की मनहूस सुबह को गोधरा में हुए निंदनीय कृत्य की तात्कालिक प्रतिक्रया था. न्यूटन के सिद्धांत को इससे बड़ी गाली पहले कभी नहीं दी गई थी. आपने मार्च 2002 में न्यूटनी भौतिकी के अपने ज्ञान और समझ का सहारा लिया और 2002 के गुजरात जनसंहार के चरम पर राज्य व्यवस्था और शासन में उसे लागू करने का रास्ता तलाशा.  


मगर उस समय आपने जानबूझकर जिस बात की अनदेखी की, और जिसे हममें से बहुत से लोग अनजाने में ही आज भी अनदेखा करते लग रहे हैं, वह सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत शासन का वह सिद्धांत था जो यह अनिवार्य करता है कि किसी सांविधानिक लोकतंत्र में स्पष्ट रूप से एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को पक्षपाती होने की इजाजत नहीं दी जा सकती. यह राज्य का बाध्यकारी कर्तव्य था कि उसने किसी भी संभावित न्यूटनी प्रतिक्रया का अनुमान लगाकर उसे नियंत्रित किया होता ; न कि निर्दोष लोगों को सुनियोजित रूप से निशाना बनाने को सुगम बनाता ! 


जैसा भी हो, महात्मा की भूमि में सद्भावना के प्रसार के आपके घोषित लक्ष्य के साथ एका प्रदर्शित करते हुए मैं आपके सद्भावना मिशन में आपका साथ देने का संकल्प लेता हूँ. इसका इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है कि सत्य को उजागर करने में मदद की जाए और न्याय एवं सद्भावना को विजयी होने दिया जाए. जैसा कि हम सभी समझते हैं, सत्य एवं न्याय के बिना कोई सद्भावना नहीं हो सकती. मैं एतद्वारा गुजरात के प्रशासन एवं राज्य व्यवस्था में फिर से सद्भावना कायम करने के लिए यथाशक्ति सहयोग करने का अपना संकल्प दुहराता हूँ. 


मगर मैं आपको चेताना चाहता हूँ कि दिल से महसूस की जाने वाली सच्ची सद्भावना एक ऎसी चीज है जिसकी हम न तो मांग कर सकते हैं न ही उसे खरीद या छीन सकते हैं... हम बस उसके लायक होने के लिए प्रयास कर सकते हैं. और यह कोई आसान काम नहीं साबित होने वाला है. महात्मा की भूमि निश्चित रूप से धीरे-धीरे अपनी सम्मोहन की अवस्था से बाहर आ रही है.  


गुजरात के सबसे ताकतवर व्यक्ति होने के कारण आपको लग सकता है कि आपको समाज के सभी वर्गों की समझ के हिसाब से जवाबदेह महसूस करने की आवश्यकता नहीं है. मगर मेरा विश्वास करें, इतिहास ने बार-बार यह साबित किया है कि वास्तविक सद्भावना के बिना सत्ता खतरों से भरे हुए एक रास्ते की तरह है... यह एक ऐसा रास्ता भी है जहां से वापसी की कोई गुंजाइश नहीं होती.


समभाव एक ऎसी स्थिति है जो सद्भाव की पूर्ववर्ती होती है. साम्य एवं सद्भाव के साथ शासन न केवल आपकी आस्था की पहली चीज होनी चाहिए वरन आपके सम्प्रदाय की आखिरी चीज भी. 


सत्य अक्सर कड़ुआ होता है और इसे स्वीकार करना इतना आसान नहीं है. मैं आशा करता हूँ कि इस पत्र को आप उसी भावना के साथ ग्रहण करेंगे जिस भावना के साथ यह लिखा गया है और आप या आपके प्रतिनिधि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बदले के किसी कृत्य में संलग्न नहीं होंगे जैसा कि आपकी आदत है. 


मार्टिन लूथर किंग जूनियर के शब्दों में - किसी भी जगह पर अन्याय, हर जगह पर न्याय के लिए एक ख़तरा है. न्याय के लिए संघर्ष कर रहे गुजरात के अभागे पीड़ितों का उत्साह कभी मंद पड़ सकता है मगर उसे झूठे गोएबलीय प्रोपेगंडा की किसी भी मात्रा द्वारा दबाया नहीं जा सकता. इन्साफ की लड़ाई दुनिया में कहीं भी आसान नहीं रही है... इसमें हमेशा अनंत धैर्य और अचूक लगन की आवश्यकता होती है. गुजरात में सत्य एवं न्याय के लड़ाकों की भावना को एम एस विश्वविद्यालय, बड़ौदा के पुराछात्र भूचुंग सोनम की इस कविता में व्यक्त किया गया है -   

मेरे पास सिद्धांत हैं और कोई सत्ता नहीं 
तुम्हारे पास सत्ता है और कोई सिद्धांत नहीं 
तुम, तुम हो
और मैं, मैं हूँ
समझौते का कोई सवाल ही नहीं 
तो शुरू होने दो युद्ध...

मेरे पास सत्य है और कोई ताकत नहीं 
तुम्हारे पास ताकत है और कोई सत्य नहीं 
तुम, तुम हो 
और मैं, मैं हूँ 
समझौते का कोई सवाल ही नहीं 
तो शुरू होने दो युद्ध... 

तुम कूंच सकते हो मेरा सर 
मैं लड़ूंगा
तुम कुचल सकते हो मेरी हड्डियां 
मैं लड़ूंगा
ज़िंदा दफना सकते हो मुझे 
मैं लड़ूंगा
अपनी नसों में दौड़ते हुए सत्य के साथ
मैं लड़ूंगा
अपनी रत्ती-रत्ती ताकत भर 
मैं लड़ूंगा
उखड़ती हुई अपनी आखिरी सांस तक 
मैं लड़ूंगा...
तब तक लड़ूंगा मैं 
जब तक कि जमींदोज नहीं हो जाता 
तुम्हारे झूठों से बना हुआ किला 
जब तक कि तुम्हारे झूठों से पूजा हुआ शैतान 
घुटने नहीं टेक देता सत्य के मेरे फ़रिश्ते के सामने. 

कृपालु ईश्वर आपको निष्पक्ष एवं सद्भावपूर्ण होने के लिए अपेक्षित शक्ति प्रदान करे 

आप सभी के लिए,
सत्यमेव जयते !

शुभकामनाओं सहित,

आपका 
संजीव भट्ट  
                                                                   ::  :: :: :: 
(हिन्दुस्तान टाइम्स से साभार) 

10 comments:

  1. पत्र व कविता दोनों पठनीय और सराहनीय.. आभार इसे पढवाने के लिए... संजीव भट्ट जी को निलम्बित क्या इसी पत्र के चलते होना पड़ा अथवा कोई और कारण था ?

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  2. aap yah behad zaroori kaam kar rahe hain bhai. shubhkamnayen

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  3. ऐतिहासिक महत्व का आरोप पत्र है यह. संयत, तर्कपूर्ण और एक दम बेबाक. क़ानून की बारीकियां जो सत्ता में बैठे 'मदांध'लोगों की समझ में अक्सरहा नहीं आतीं, उनका खुलासा भी क़बिले गौर है. गुजराती अस्मिता और गौरव के प्रचार की पोल भी बखूबी खोली है. और रही-सही कसर एक अत्यंत प्रभावी कविता को उद्धृत कर के पूरी कर दी है. यह पत्र राष्ट्रीय महत्त्व का बन गया है. अनुवाद ने तो मुशैरा लूट ही लिया है.

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  4. FROM THIS LETTER I JUST PICKED ONE IMPORTANT MATTER THAT WITH SADBHAVANA-SAMBHAVANA IS REALLY VERY IMPORTANT

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  5. ek mahan dastavej se gujarne ka sa anubhav raha ise padhna. iske anuvad ke liye abhar jaisi baat kya kahna, nishchay hi apne apni jimmedari samjhte hue yh kiya hai

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  6. बहुत कुछ बोलता है यह पत्र ! लेकिन स्वार्थान्ध सत्ताधीशों को को इसकी आवाज़ सुनाई नहीं देगी ! मनोज जी आपका धन्यवाद ! गुजरात सन्दर्भ में इस पत्र इस पत्र को हमेशा याद रखा जायेगा ! संजीव भट्ट भाषा और भाव को देखकर यह कहा जा सकता है कि वे न केवल एक जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी हैं बल्कि एक सुलझे हुए,साहसी ,सत्यनिष्ठ ,व्यक्ति होने के साथ-साथ संवेदनशील ,कवि-ह्रदय भी हैं !

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  7. apka jawab modi ko kabhi pasand aya hoga aur unke gyan me kuch to badhotri huyi hi hogi,,,

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  8. Congress is paying lots of money to Sanjiv Bhatt for all this.

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  9. Gujraat mein jo hua galat tha ..lekin Muslim ke dard ki chinta sabko hai..koi un Hinduon ko bhi yaad karle jinko Muslims ne Train mein jala diya tha..aur uske baad jo hua ..usme bahut se Hindu mare the..lekin pata nahi kyon..sabko sirf Muslims ki chinta hai...Yahan tak ki itne sare NGO's ke naam pe jo dukan chal rahi hain wo bhi sirf Muslim ki chinta "Karti" hain...Koi nahi yaad rakhta ki jo bhi balst India mein hota hai..usi mein Hindu hee marte hain..unki chinta to kisi NGO ko nahi hoti..kabhi koi NGO us baare mein koi aawaz kyon nahi "uthati"... mera sas-2 isara Arundhati Roy and Party se hai..ya fir all these NGO's are sponsored by Dirty Congress.

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  10. मनोज भाई.
    इस पात्र के हिंदी अनुवाद के लिए शुक्रिया.आपकी साहित्यप्रिती के साथ सामाजिक जीम्मेदारी का रंग मिला हुआ है जो अत्यंत सुखद घटना है.कविता को जितनी जरूरत कागज़ की होती है उतनी ही कविता को जरूरत होती है आप जैसे भावक की.

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