Sunday, September 18, 2011

नाजिम हिकमत : जैसे किसी बाग़ी का झंडा

नाजिम हिकमत की 'रात 9 से 10 के बीच की कविताएँ' से एक और कविता...












रात 9 से 10 के बीच लिखी गई कविताएँ - 4 : नाजिम हिकमत 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

(पत्नी पिराए के लिए)

4 दिसंबर 1945 

अपना वही कपड़ा निकालो जिसमें मैनें तुम्हें पहले पहल देखा था,
सबसे सुन्दर नजर आओ आज,
बसंत ऋतु के पेड़ों की तरह...
अपने जूड़े में वह कारनेशन लगाओ 
          जो मैनें तुम्हें जेल से भेजा था एक चिट्ठी में,
ऊपर उठाओ अपना चूमने लायक, चौड़ा गोरा माथा.
आज कोई रंज नहीं कोई उदासी नहीं --
                                                         कत्तई नहीं ! --
आज नाजिम हिकमत की बीवी को बहुत खूबसूरत दिखना है 
                                                         जैसे किसी बाग़ी का झंडा...
                               :: :: ::

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