Tuesday, September 20, 2011

मरम अल-मसरी : रोती है गुड़िया

मरम अल-मसरी की चार कविताएँ...












मरम अल-मसरी की चार कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

इंतज़ार करूंगी 
बच्चों के सोने का 
और फिर 
अपनी नाकामयाबी की लाश को 
बहने दूंगी 
छत तक.
:: :: :: 

एक दिन 
वह मोल ले लाया 
एक गुड़िया.
वह हंसती थी 
जब वह हंसने का हुक्म देता था उसे,
गाती और नाचती थी 
उसके बटन दबाने पर,
और सो जाती थी 
जब वह लिटा देता था उसे.
मगर ओह मालिक का गुस्सा !
उसके बिस्तर में लेटी
गुड़िया
रोती है कभी-कभी 
और ताकती रहती है आँखें फाड़ कर. 
:: :: :: 

माफी चाहती हूँ...
अनजाने,
और अनचाहे,
मेरी हवाओं ने 
झकझोर दिया तुम्हारी डालियों को   
और गिरा दिया 
तुम पर अभी तक खिला 
इकलौता फूल.
:: :: :: 

उसके पास दो स्त्रियाँ हैं :
एक सोती है उसके बिस्तर पर,
और दूसरी 
उसके ख़्वाबों के बिस्तर पर.

उसके पास उससे प्यार करने वाली दो स्त्रियाँ हैं :
एक बूढ़ी हो रही है उसके बगल में,
दूसरी उसे पेश करती है अपनी जवानी 
और फिर कुम्हला जाती है. 

उसके पास दो स्त्रियाँ हैं :
एक उसके घर के दिल में,
और दूसरी उसके दिल के घर में.
:: :: :: 

9 comments:

  1. उसके पास दो स्त्रियाँ हैं :
    एक सोती है उसके बिस्तर पर,
    और दूसरी
    उसके ख़्वाबों के बिस्तर पर...
    ये रूहानी सोच है मनोज जी..आपको मुरीद लोगों में हमें भी शुमार कीजिए..लगता है कि आपके ब्लॉग के आशियाने तक खुद की राहें भी बनानी पड़ेंगी..बहुत बहुत शुक्रिया इस विचार को साझा करने के लिए..एक और शख्यियत से सीखने का मौका मिला है..

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  2. एक स्त्री की पीड़ा को शब्द दिए हैं मरम-अल-मसरी ने अपनी इन मार्मिक कविताओं में ! धन्यवाद मनोज जी !

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  3. यकीनन हमारे दिल-दिमाग दो घर है। जहाँ हर शख्स के लिए अलग-अलग जगह है। अपनी बात को बेहद साफगोई से पेश किया है।

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  4. सुंदर कवितायें!

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  5. अमूमन हर इंसान इन दिनों दोहरी जिंदगी जी रहा है.स्त्री और पुरुष दोनों का यही सच है.दिल और दिमाग अलहदा सोचने लगते है.शायद अपने और दूसरों के लिए भी ऐसा ही... आज की जिन्दगी का सच ..

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  6. बेहतरीन कवितायें

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  7. मनोज जी,
    नमस्कार,
    आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|

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