Tuesday, September 6, 2011

मैं तुम्हें पहले ही गड़प कर चुकी हूँ

जमना हद्दाद लेबनान की प्रसिद्द कवि, अनुवादक एवं पत्रकार हैं. आपका जन्म दिसंबर 1970 में बेरुत में हुआ. प्रतिष्ठित 'अल नहर' अखबार के साहित्यिक-सांस्कृतिक पृष्ठों की सम्पादक के साथ-साथ 'जसद' पत्रिका की भी सम्पादक हैं. सात भाषाओं की जानकार हद्दाद कई भाषाओं में लिखती हैं. कविताओं के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनका तमाम भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है. फिलहाल उनकी यह कविता देखें...












शैतान : जमना हद्दाद 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

अजनबी, जब मैं बैठी हूँ तुम्हारे सामने 
जानती हूँ कि तुम्हें कितना वक़्त लगेगा 
हमारे बीच की दूरी तय करने में.
तुम अपनी होशियारी की इन्तेहा पर हो
और मैं अपनी दावत की.
तुम सोच रहे हो कि कैसे शुरू करूँ इस पर डोरे डालना 
और मैं,
अपनी संजीदगी के परदे के पीछे से  
तुम्हें पहले ही गड़प कर चुकी हूँ.
                    :: :: :: 

15 comments:

  1. अल्टीमेट !
    शेयर कर रहा हूँ .....

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  2. वाह वाह , कमाल है ! बहुत जबरदस्त कविता ! धन्यवाद मनोज जी !

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  3. पहले ही गड़प कर चुकी हूँ...
    सुंदर..

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  4. क्या कहने! एकदम परे, पूर्वानुमान से! अद्भुत!

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  5. बेहद कमाल की कविता ... पहले ही गड़प कर चुकी हूँ ... वाह

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  6. बहुत ही शानदार..गड़प

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  7. choti see kabita kitna kuch kah gayee.
    diwakar ghosh

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  8. बहुत खूब... लाजवाब!

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  9. अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  10. वाह ! गज़ब की कविता है....

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  11. Just amazing.

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