टॉमस ट्रांसट्रोमर की एक कविता...
आग की लिखाई : टॉमस ट्रांसट्रोमर
(अनुवाद : मनोज पटेल)
(अनुवाद : मनोज पटेल)
उदासी के महीनों में
केवल तुमसे प्यार करते समय ही
खुशी झिलमिलाई जीवन में
जैसे जुगनू जलता है और बुझता है, जलता है और बुझता है
और इन झलकियों में
अँधेरे में भी हमें पता चल जाता है
जैतून के पेड़ों के बीच उसकी उड़ान का
उदासी के महीनों में आत्मा सिमटी पड़ी रही, बेजान
मगर देह गई सीधे तुम्हारे पास
गरजता रहा रात में आकाश
चोरी-चोरी हमने दुह लिया ब्रह्माण्ड को
और बचे रहे
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तामस त्रांसत्रोमर, Manoj Patel Translation
'दुह लिया ब्रह्मांड को'-- खूबसूरती और ज़िंदगी इसी 'दुह' पर टिकी है। बेहतरीन अनुवाद फिर से। प्रूफ की एकाध अशुद्धियाँ हैं, दूर कर दीजिएगा।
ReplyDeleteऐसे ही गरजते रहें सर ...............बहुत खूब .......
ReplyDelete"" चोरी चोरी हमने दुह लिया ब्रह्मांड को /और बचे रहे "...!!
ReplyDelete........मगर देह गई सीधे तुम्हारे पास ..सीधा काम फर्रुखाबादी !! बहुत अच्छा अनुवाद मनोज जी ! बधाई
ReplyDeleteअच्छा अनुवाद!
ReplyDeleteकई बार किसी का साथ भर होना आपकी आत्महत्या टाल सकता है...
ReplyDelete...पर बस टाल भर सकता है !
गो कि साथ होना हमेशा नहीं होता !!