रॉबर्ट ब्लॉय की एक और कविता...
हाथों में हाथ : रॉबर्ट ब्लॉय
(अनुवाद : मनोज पटेल)
हाथों में हाथ थामना किसी प्रिय का
आप पाते हैं कि वे नाजुक पिंजरे हैं...
गा रहे होते हैं नन्हे पंछी
हाथ के निर्जन मैदानों
और गहरी घाटियों में
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Manoj Patel Translation, Manoj Patel Blog
बहुत सुन्दर .. नन्हें पंछी हाथों के
ReplyDeletedivy!
ReplyDeleteSundar..
ReplyDeletevaah.............
ReplyDeleteऐसे कफस को तो बुलबुलें तरसती हैं ! आभार मनोज जी !
ReplyDeleteमनोज जी ! आप जिस तरह एक भाषा से दूसरी भाषा में प्रवेश करते हैं वो अनुपम है !...अनुवाद कठिन प्रकिया से गुजरने वाला कार्य है जिसे आपने अपने लय में साधा है । एक भाषा की धुन दूसरी भाषा तक आप पहुँचा रहे हैं...एक भाषा का प्रवाह दूसरी भाषा तक ले आना सरल नहीं पर आपने इसे सिद्ध किया है । एक भाषा की चुप्पियाँ,खिलखिलाहटें,सारे रंगों के साथ स्थानांतरित कर पाते हैं आपके अनुवाद । बहुत बहुत शुभकामनायें,बधाई !!
ReplyDeleteAAP KE ANUVAD NE KAVITA KO EK NAYI UDDAN DI HUMKO...POORI DUNIYA KO PADH SAKTE HAIN......WO BHI DIL SE.....DHAYNYAVAAD....
ReplyDeleteदरअसल प्रेम के आगे सम्पूर्ण श्रृष्टि इतनी छोटी हो ही जाती है !
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