रॉबर्ट ब्लाय की कविताएँ...
रॉबर्ट ब्लाय की दो कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
घोड़े को भिगोना
कितना अजीब है सोचना
सारी महात्वाकांक्षाओं को छोड़ देने के बारे में !
अचानक मैं देखता हूँ साफ़-साफ़ आँखों से
बर्फ की एक सफ़ेद पपड़ी
जो अभी-अभी गिरी है घोड़े के अयाल पर !
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लम्बी व्यस्तता के बाद
हफ़्तों मेज पर बिताने के बाद
आखिर निकल पड़ता हूँ टहलते हुए.
छिप गया है चंद्रमा, पैरों के नीचे मुलायम मिट्टी जुते हुए खेत की
न तो सितारे न ही रोशनी का कोई सुराग !
सोचो इस खुले मैदान में अगर कोई घोड़ा
सरपट दौड़ता आ रहा होता मेरी तरफ ?
वे सारे दिन बेकार गए
जो मैनें नहीं बिताए एकांत में.
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Manoj Patel Translation, Manoj Patel Blog
सोचना,महत्वाकांक्षा,टहलना और सरपट दौढ्ना...........अति सुन्दर .......सर !!!
ReplyDeleteसुन्दर.
ReplyDeleteजानते हैं, आदमी एकांत में सबसे ज़्यादा शिद्दत से किसे मिस करता है? खोये हुए एकांत को ! उस एकांत को जो उसका हो सकता था !
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