Saturday, October 22, 2011

ताहा मुहम्मद अली : खेतिहर

फिलिस्तीनी कवि ताहा मुहम्मद अली की एक और कविता...


खेतिहर : ताहा मुहम्मद अली 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

एक खेतिहर...
एक किसान का बेटा :
मेरे भीतर बसती है 
एक माँ की ईमानदारी 
और एक मछली बेचने वाले का फरेब.  
मैं बंद नहीं करूंगा 
पीसना 
जब तक बाक़ी है 
मेरी चक्की के भीतर 
चुटकी भर अनाज भी --
और मैं जोतता रहूँगा खेत 
जब तक बोरे में रहेंगे 
मेरे हाथों के लिए बोने भर को बीज.   
                                                  25.06.2000   
                    :: :: ::
Manoj Patel Translation, Manoj Patel Blog 

6 comments:

  1. 'मैं बंद नहीं करूंगा.......... जब तक बोरे में रहेंगे / मेरे हाथों के लिए बोने भर को बीज.' गज़ब कविता है, मनोज. चीज़ों की समझ इतनी साफ़, मनोबल इतना बुलंद और संकल्प इतना दृढ ! ज़बर्दस्त काम कर रहे हो मनोज, इस अवदान - चयन एवं अनुवाद - को रेखांकित करने के लिए शब्द ओछे पड़ जाते हैं. फिर भी, बधाई.

    ReplyDelete
  2. त्योहारों की नई श्रृंखला |
    मस्ती हो, खुब दीप जले |
    धनतेरस-आरोग्य- द्वितीया
    मौज मनाने चले चले ||

    बहुत बहुत आभार ||

    ReplyDelete
  3. आशा और विश्वास जगाती सार्थक पोस्ट...

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...