Friday, October 14, 2011

टॉमस ट्रांसट्रोमर की कविता

टॉमस ट्रांसट्रोमर की एक कविता...



मार्च 1979 : टॉमस ट्रांसट्रोमर 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

ऊब कर उन सबसे जो मिलते हैं तमाम शब्दों के साथ 
शब्द, मगर कोई भाषा नहीं, 
चला जाता हूँ मैं बर्फ से ढंके हुए द्वीप पर 
कोई शब्द नहीं होते आदिम लोगों के पास 
सादे कागज़ फैले हुए हर तरफ !
अचानक बर्फ में दिखते हैं हिरन के खुरों के निशान 
भाषा, मगर कोई शब्द नहीं. 
                    :: :: :: 

3 comments:

  1. शब्द, मगर कोई भाषा नहीं
    भाषा, मगर कोई शब्द नहीं ...
    बहुत सुन्दर !!!

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  2. मौन की भाषा अथवा तो चिन्हों की भाषा... शब्दों के बिना संवाद का यह ढंग सुंदर है...वरना तो शब्दों की भीड़ में भाषा कहीं खो ही गयी है. आभार!

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  3. कई बार लिखे का/बोले का उतने मायनी नहीं होता जितना अव्यक्त का, कि या तो समझो और चुप ही रहो ! और ना समझे तो भी चुप ही रहो ! गुड का मीठा होना शब्द नहीं है, शब्द नहीं हैं हिरन के खुरों के निशान.

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