Saturday, September 17, 2011

बिली कालिन्स : कविता का असली मतलब

बिली कालिन्स की एक कविता...













कविता का परिचय : बिली कालिन्स
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मैं उनसे कहता हूँ
किसी कविता को लेकर उसे रोशनी की तरफ करके देखो 
जैसे देखते हैं किसी रंगीन स्लाइड को 

या फिर अपना एक कान सटाओ इसके संग्रह से. 

मैं कहता हूँ कविता के भीतर एक चूहा छोड़ो
और उसे बाहर निकलने का अपना रास्ता तलाशते देखो,

या फिर दाखिल होओ कविता के कमरे के भीतर 
और दीवार टटोलो बिजली की बटन के लिए.

मैं उनसे चाहता हूँ किसी कविता की सतह पर 
वाटरस्कीइंग करवाना 
किनारे कवि के नाम की तरफ हाथ हिलाते हुए.

मगर वे तो सिर्फ 
कविता को कुर्सी से बांधकर
उससे जबरन कुछ कबुलवाना चाहते हैं. 

वे उसे पीटने लगते हैं एक पाइप से 
उसका असली मतलब जानने के लिए. 
                    :: :: :: 

6 comments:

  1. bahut khoob..... ye share kar raha hoon .

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  2. बहुत अछी कविता...उतना ही अच्छा अनुबाद ....तभी तो ..पढ़ते -पढ़ते न पढ़ा जाय तो पेट में कविता का चूहा दौड़ता रहता है .......

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  3. बहुत अच्छी कविता है .. कवि से बहुत कुछ कहती
    मैं कहता हूँ कविता के भीतर एक चूहा छोड़ो
    और उसे बाहर निकलने का अपना रास्ता तलाशते देखो... ये बिलकुल 'who moved my cheese 'की तरह है .
    या फिर एक irony ::मगर वे तो सिर्फ
    कविता को कुर्सी से बांधकर
    उससे जबरन कुछ कबुलवाना चाहते हैं.

    वे उसे पीटने लगते हैं एक पाइप से
    उसका असली मतलब जानने के लिए.


    कविता को कहती कविता ..

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  4. आजकल के आलोचकों पर करारा व्यंग करती है कविता !कविता को समझने की तमीज सिखाई है बिली कालिंस ने इसके जरिये !बहुत अच्छी इस कविता के अनुवाद और शेयरिंग के लिए धन्यवाद मनोज जी !

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  5. ''मगर वे तो सिर्फ
    कविता को कुर्सी से बाँधकर
    उससे जबरन कुछ कबूलवाना चाहते हैं''
    ........................... और यहीं से शुरू हो जाता है कविता का निर्वासन अपने ही घर से !

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