Sunday, October 9, 2011

ताहा मुहम्मद अली : स्मृति निकाले जाने की शल्यक्रिया

फिलिस्तीनी कवि ताहा मुहम्मद अली की एक और कविता... 














स्मृति निकाले जाने की शल्यक्रिया के बाद की समस्याएँ : ताहा मुहम्मद अली 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

खानाबदोश भाषा के एक पुराने 
सपनों के शब्दकोष में 
टीकाएँ हैं मेरे नाम की 
और मेरे समस्त लेखन की 
तमाम व्याख्याएँ. 

आतंक से काँप उठता हूँ मैं 
जब रूबरू होता हूँ खुद से 
ऐसे किसी शब्दकोष में.
मगर वह रहा मैं :
बूचड़खाने से भाग निकलता एक ऊँट,
सरपट दौड़ता पूरब की तरफ,
जिसका पीछा किया जा रहा है 
चाकुओं और आमिलों के एक जुलूस द्वारा,
औरतों के हाथों में है ओखली और मूसल 
कीमा बनाने के लिए. 

खुद को निराशावादी नहीं मानता मैं,
और निश्चित रूप से 
पुराने खानाबदोश दु:स्वप्नों के सदमे से 
पीड़ित भी नहीं,
फिर भी दिन दोपहर 
जब भी चालू या बंद करता हूँ रेडियो,
साँसों में समा जाता है 
एक तरह का ऐतिहासिक, आध्यात्मिक कोढ़. 
महसूसता हूँ भाषा के बन्धनों को 
टूटते हुए
भीतर अपने गले से लेकर कमर तक,
बंद कर देता हूँ ध्यान देना 
अपने पावन कर्तव्यों पर :
भौंकना, और दांतों को किचकिचाना.

मैं स्वीकार करता हूँ !
मैनें लापरवाही बरती है 
स्मृति निकाले जाने की शल्यक्रिया के बाद की 
भौतिक चिकित्सा के प्रति.
मैं भूल चुका हूँ 
थक कर 
फर्श पर ढेर हो जाने जैसा साधारण काम भी.
                                                                    10.04.1973 
                       :: :: :: 
Manoj Patel Translations, Manoj Patel's Blog 

4 comments:

  1. टामस ट्रांसट्रोमर की कवितायें कब पढ़ा रहे हैं आप |

    ReplyDelete
  2. "खानाबदोश भाषा के एक पुराने
    सपनों के शब्दकोश में "

    ReplyDelete
  3. सुन्दर...यह खुद के भौतिक सत्यापन जैसा ही है.

    ReplyDelete
  4. बहुत मार्मिक...

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...