Tuesday, October 11, 2011

दून्या मिखाइल की कविता


दून्या मिखाइल की कविता, 'कटोरा'...









कटोरा : दून्या मिखाइल 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

उस स्त्री ने कटोरे को उल्टा करके रख दिया 
अक्षरों के बीच में. 
एक मोमबत्ती को छोड़कर बाक़ी सारी बत्तियां बुझा दीं 
और अपनी उंगली कटोरे के ऊपर रखी 
और मन्त्र की तरह कुछ शब्द बुदबुदाए :
ऐ आत्मा... अगर तू मौजूद है तो कह - हाँ. 
इस पर कटोरा हाँ के संकेत स्वरूप दाहिनी तरफ चला गया. 
स्त्री बोली : क्या तुम सचमुच मेरे पति ही हो, मेरे शहीद पति ?
कटोरा हाँ  के संकेत में दाहिनी तरफ चला गया. 
उसने कहा : तुम इतनी जल्दी मुझे क्यों छोड़ गए ?
कटोरा इन अक्षरों पर फिरा - 
यह मेरे हाथ में नहीं था. 
उसने पूछा : तुम बच क्यों नहीं निकले ?
कटोरा इन अक्षरों पर फिरा - 
मैं बच निकला था. 
उसने पूछा : तो फिर तुम मारे कैसे गए ?
कटोरे ने हरकत की : पीछे से. 
उसने कहा : और अब मैं क्या करूँ 
इतने सारे अकेलेपन के साथ ? 
कटोरे ने कोई हरकत नहीं की. 
उसने कहा : क्या तुम मुझसे प्रेम करते हो ?
कटोरा हाँ  के संकेत में दाहिनी तरफ चला गया.
उसने कहा : क्या मैं तुम्हें यहाँ रोक सकती हूँ ?
कटोरा नहीं  के संकेत में बायीं तरफ चला गया.
उसने पूछा : क्या मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूँ ? 
कटोरा बायीं तरफ चला गया.
उसने कहा : क्या हमारी ज़िंदगी बदलेगी ? 
कटोरा दाहिनी तरफ चला गया. 
उसने पूछा : कब ?
कटोरे ने हरकत की - 1996.
उसने पूछा : क्या तुम सुकून से हो ?
कटोरा हिचकिचाते हुए हाँ की तरफ चला गया. 
उसने पूछा : मुझे क्या करना चाहिए ?
कटोरे ने हरकत की - बच निकलो
उसने पूछा : किधर ?
कटोरे ने कोई हरकत नहीं की. 
उसने कहा : तुम मुझसे क्या चाहते हो ?
कटोरा एक बेमतलब जुमले पर फिरा. 
उसने कहा : कहीं तुम मेरे सवालों से ऊब तो नहीं गए ?
कटोरा बायीं तरफ चला गया. 
उसने कहा : क्या मैं और सवाल कर सकती हूँ ?
कटोरे ने कोई हरकत नहीं की. 
थोड़ी चुप्पी के बाद, वह बुदबुदाई :
ऐ आत्मा... जा, तुझे सुकून मिले. 
उसने कटोरा सीधा किया 
मोमबत्ती को बुझा दिया 
और अपने बेटे को आवाज़ लगायी 
जो बगीचे में कीट-पतंगे पकड़ रहा था 
गोलियों से छिदे हुए एक हेलमेट से. 
                    :: :: ::
('नई बात' ब्लॉग पर पूर्व-प्रकाशित)
Manoj Patel Translations, Manoj Patel's Blog 

1 comment:

  1. आत्मा जो कह सकती है वह हम पहले से ही जानते हैं न... क्योंकि सारा अस्तित्त्व एक है...वे भी जो चले गए और वे भी जो मौजूद हैं... सुंदर और मार्मिक कविता!

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...