Wednesday, October 19, 2011

रॉबर्ट ब्लाय की दो कविताएँ

रॉबर्ट ब्लाय की कविताएँ... 




रॉबर्ट ब्लाय की दो कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

घोड़े को भिगोना 

कितना अजीब है सोचना 
सारी महात्वाकांक्षाओं को छोड़ देने के बारे में !
अचानक मैं देखता हूँ साफ़-साफ़ आँखों से 
बर्फ की एक सफ़ेद पपड़ी 
जो अभी-अभी गिरी है घोड़े के अयाल पर !
                    :: :: :: 

लम्बी व्यस्तता के बाद 

हफ़्तों मेज पर बिताने के बाद 
आखिर निकल पड़ता हूँ टहलते हुए.
छिप गया है चंद्रमा, पैरों के नीचे मुलायम मिट्टी जुते हुए खेत की 
न तो सितारे न ही रोशनी का कोई सुराग !
सोचो इस खुले मैदान में अगर कोई घोड़ा 
सरपट दौड़ता आ रहा होता मेरी तरफ ?
वे सारे दिन बेकार गए 
जो मैनें नहीं बिताए एकांत में.  
                    :: :: :: 
Manoj Patel Translation, Manoj Patel Blog 

3 comments:

  1. सोचना,महत्वाकांक्षा,टहलना और सरपट दौढ्ना...........अति सुन्दर .......सर !!!

    ReplyDelete
  2. जानते हैं, आदमी एकांत में सबसे ज़्यादा शिद्दत से किसे मिस करता है? खोये हुए एकांत को ! उस एकांत को जो उसका हो सकता था !

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...