Monday, October 24, 2011

मरम अल-मसरी : इंतज़ार

मरम अल-मसरी की तीन कविताएँ...


मरम अल-मसरी की तीन कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

जब तुम 
उतार देते हो अपने जूते 
और दरवाजे पर 
या बेड के नीचे 
छोड़ देते हो उन्हें 
अकेला 
वे भर जाते हैं 
ऊब, और 
इंतज़ार के ठन्डे पैरों से.
:: :: ::

अपने झूठ मुझे सौंप दो 
मैं उन्हें धुलकर 
सहेज लूंगी 
अपने निश्छल दिल में 
सच बनाने के लिए. 
:: :: :: 

मुझे और मेरी खुशी को 
इंतज़ार है 
तुम्हारे क़दमों की आवाज़ का.
:: :: :: 
Manoj Patel Translation, Manoj Patel Blog 

5 comments:

  1. अच्छी कविता, और अनुवाद भी आम दिनों की तरह अच्छा ही.' मुझे और मेरी खुशी को /इंतज़ार है / तुम्हारे क़दमों की आवाज़ का'. 'धुलकर' खटकता है ज़रा. 'धो-पौंछ कर' हो सकता था. चीज़ें धुल कर आती हैं, पर धोई जाती हैं. न जंचे तो....आप जैसे सिद्ध-हस्त अनुवादक का ही ध्यान खींचा जा सकता था.अन्यथा न लेंगे, यह भरोसा है.

    ReplyDelete
  2. Haan.. komal bhaavnaayen..

    ReplyDelete
  3. बहुत मोहक कविताएं ! सही कहा है धुलकर की जगह धोकर या धुला कर हो सकता है...

    ReplyDelete
  4. "अपने झूठ मुझे सौंप दो
    मैं उन्हें धुलकर सहेज लूंगी
    अपने निश्छल दिल में
    सच बनाने के लिए"...!!!!!!!

    ReplyDelete
  5. मुझे भी इन्तजार है ................इसी तरह की और अच्छी कविताओं के अनुवाद का ...........मजा आ गया सर....!!!

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...