Thursday, October 27, 2011

रोक डाल्टन : बारूद का स्वाद

क्रांतिकारी कवि रोक डाल्टन की कविता...















भयानक बात : रोक डाल्टन 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मेरे आंसू तक 
सूख चुके हैं अब तो 

मैं, जिसे भरोसा था हर एक चीज में 
हर किसी पर 

मैं, जिसने बस थोड़ी सी नर्म-दिली चाही थी 
जिसमें और कुछ नहीं लगता 
सिवाय दिल के 

मगर अब देर हो चुकी है 
और अब नर्म-दिली ही काफी नहीं रही 

स्वाद लग गया है मुझे बारूद का 
                    :: :: :: 
Manoj Patel Padhte Padhte 

5 comments:

  1. .......कोई कब तक किसी की नरमदिली की राह देखे ! बहुत अच्छी कविता ! आभार !

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  2. नर्म आवाज़, भली बातें, मुहज्ज़ब लहज़े,
    पहली बारिश में ही ये रंग उतर जाते हैं.
    -जावेद अख्तर

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  3. हाथरसी काका पर मेरा, यह शोध पत्रिका पढ़ा
    देखभाल कर त्वचा की सुन्दर, सर्दी का रंग चढ़ा
    पढ़ते-पढ़ते रोक डाल्टन, स्वाद बारूद लगा
    जिंदगी का सफ़र दीवाली, बदला रूप भला

    आपकी उत्कृष्ट पोस्ट का लिंक है क्या ??
    आइये --
    फिर आ जाइए -
    अपने विचारों से अवगत कराइए ||

    शुक्रवार चर्चा - मंच
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  4. खुबसूरत प्रस्तुति ||
    आभार महोदय |
    शुभकामनायें ||

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  5. मगर अब देर हो चुकी है
    मगर अब नरम दिली ही काफी नहीं रही
    अब स्वाद लग गया है मुझे बारूद का ....
    वाह गहरी बात को सरल शब्दों में ब्यान करती बढ़िया अभिव्यक्ति
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_27.html

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