नोबेल पुरस्कार विजेता टॉमस ट्रांसट्रोमर के संस्मरणों की किताब 'मेमोरीज लुक ऐट मी' से एक अंश 'झाड़-फूंक' आप इस ब्लॉग पर पहले पढ़ चुके हैं. राबिन फुल्टन के अंग्रेजी अनुवाद से आज प्रस्तुत है एक और अंश...
पुस्तकालय : टॉमस ट्रांसट्रोमर
(अनुवाद : मनोज पटेल)
'सिटीजंस हाउस' नाम के उस भवन का निर्माण 1940 के आस-पास हुआ था. यह सोदेर शहर के बीचोबीच चार चौकोर भवनों का एक समूह था जो सुन्दर, उम्मीद जगाने वाला आधुनिक और क्रियाशील भी लगता था. हमारे निवास स्थान से तो यह केवल पांच मिनट की दूरी पर था.
दूसरी कई चीजों के साथ-साथ इसमें एक सार्वजनिक स्विमिंग पूल और सिटी लाइब्रेरी की एक शाखा भी थी. मुझे आवंटित क्षेत्र, स्वाभाविक और प्राकृतिक कारणों से बच्चों का संभाग था जिसमें शुरूआत में तो मेरे पढ़ने के लिए काफी किताबें थीं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण थी ब्रेह्म की लिखी लाइव्स आफ एनिमल्स.
मैं अमूमन रोज पुस्तकालय जाया करता था. मगर यह प्रक्रिया पूरी तरह से कठिनाई से मुक्त नहीं हुआ करती थी. कई बार ऐसा हुआ कि मैनें जो किताबें ले जानी चाहीं उन्हें लाइब्रेरी में नियुक्त महिलाओं ने मेरी उम्र के उपयुक्त नहीं पाया. ऎसी ही एक किताब थी नुत होल्म्बे की लिखी द डिजर्ट इज बर्निंग.
"यह किताब किसे चाहिए?"
"मुझे..."
"अरे नहीं..."
"मैं..."
"तुम अपने पिता जी से बात करो, वे चाहें तो खुद आकर यह किताब ले जा सकते हैं."
और भी बुरा तो तब हुआ जब मैनें बड़े लोगों की किताबों वाले हिस्से में घुसने की कोशिश की. मुझे एक किताब चाहिए थी जो बच्चों वाले हिस्से में तो यकीनन नहीं थी. मुझे प्रवेश द्वार पर ही रोक दिया गया.
"तुम्हारी उम्र क्या है?"
"ग्यारह साल."
"तुम्हें यहाँ से किताबें नहीं मिल सकतीं. कुछ सालों बाद तुम यहाँ आ सकते हो."
"ठीक है, मगर जो किताब मैं चाहता हूँ वह सिर्फ यहीं है."
"कौन सी किताब?"
"एकमैन की द एनीमल्स आफ स्कैंडिनेविया : ए हिस्ट्री आफ देयर माइग्रेशन." यह महसूस करते हुए कि खेल ख़त्म हो चुका है, मैनें खोखली आवाज़ में जवाब दिया. खेल सचमुच ख़त्म हो चुका था. सवाल ही नहीं उठता. मेरा चेहरा लाल हो गया, मुझे बहुत गुस्सा आया. मैं उसे कभी माफ़ नहीं करूंगा!
ऐसे वक़्त पर बहुत कम बोलने वाले मेरे एक अंकल -अंकल एलाफ- का पदार्पण हुआ. उन्होंने मुझे वयस्कों के सेक्शन वाला अपना कार्ड दे दिया और हमने यह कहानी गढ़ी कि मैं उनके लिए किताबें ले जा रहा हूँ. अब मैं वहां जा सकता था जहां मैं जाना चाहता था.
पुस्तकालय के वयस्कों वाले हिस्से की एक दीवार स्विमिंग पूल की तरफ थी. प्रवेशद्वार पर ही अन्दर से एक भभका सा आता महसूस होता था. हवा आने के लिए बनाई गई व्यवस्था के रास्ते से क्लोरीन की गंध बहती रहती और गूंजती हुई आवाजें ऐसे सुनाई पड़तीं मानो कहीं दूर से आ रही हों. स्विमिंग पूल और इस तरह की जगहों की ध्वानिकी अजीब सी होती है. यह एक उत्तम विचार था कि स्वास्थ्य और किताबों के मंदिर एक-दूसरे के पड़ोसी हों. मैं कई साल तक सिटी लाइब्रेरी की इस शाखा का निष्ठावान अतिथि बना रहा. मैं स्पष्ट रूप से इसे स्वेवाजेन के केन्द्रीय पुस्तकालय से बेहतर मानता था. स्वेवाजेन में वातावरण भारी हुआ करता था और हवा स्थिर, न तो क्लोरीन की गंध और न ही गूंजती आवाजें. यहाँ किताबों की भी गंध अलग तरह की थी जिससे मेरे सर में दर्द होने लगता था.
एक बार पुस्तकालय की बागडोर निर्बाध रूप से पाने के बाद मैनें अपना ज्यादा ध्यान कथेतर साहित्य पर केन्द्रित किया. साहित्य को मैनें उसके हाल पर छोड़ दिया. इसी तरह अर्थशास्त्र और सामाजिक समस्याएँ नाम से अंकित आलमारियों पर भी मैं निगाह नहीं डालता था. हालांकि, इतिहास में मेरा मन रमता था. चिकित्सा संबंधी किताबों से तो डर लगता था.
मगर भूगोल वाला कोना मुझे सबसे ज्यादा प्रिय था. खासतौर पर अफ्रीका वाले खानों का तो मैं भक्त था जो कि बहुत विस्तृत थे. मुझे अभी तक कुछ किताबों के नाम याद हैं, माउंट एल्गन, ए मार्केट ब्वाय इन अफ्रीका, डिजर्ट स्केचेज... पता नहीं इनमें से कोई किताब अब भी उन आलमारियों में होगी या नहीं.
अलबर्ट श्वित्ज़र नाम के किन्हीं शख्स ने एक किताब लिखी थी जिसका नाम बड़ा प्यारा सा था बिटवीन वाटर एंड प्रिमेवल फारेस्ट. इसमें खासकर ज़िंदगी के बारे में अटकलों का जिक्र था. किन्तु श्वित्ज़र ने खुद को अपने ध्येय पर कोई काम करने से रोक लिया और वे बाहर नहीं निकले; वे एक अच्छे अन्वेषक नहीं थे. उदाहरण के लिए वे गोस्ता मोबर्ग की तरह नहीं थे जिसने नाइजर और चाद जैसे अनजाने प्रदेशों के आकर्षण में अंतहीन दूरियां तय की थीं. ये ऐसे क्षेत्र थे जिनके बारे में पुस्तकालय में बहुत कम जानकारी उपलब्ध थी. हालांकि कीनिया और तंजानिया अपने स्वीडिश बंदोबस्त के कारण कृपापात्र थे. ऐसे सैलानी किताबें लिखते थे जो नील नदी के जलमार्ग से होते हुए सूड क्षेत्र से फिर उत्तर की तरफ मुड़ जाते थे. मगर वे सैलानी किताबें नहीं लिखते थे जो सूडान के नीरस अंचल में जाने का साहस करते थे, न ही वे जो कुर्दुफान या दारफुर तक का रास्ता तय कर पाने में कामयाब हो जाते थे. अंगोला और मोजाम्बिक की पुर्तगाली कालोनियां भी, जो नक़्शे पर इतनी बड़ी दिखती थीं, पुस्तकालय में अफ्रीका की आलमारियों के लिए अनजाने और उपेक्षित क्षेत्र थे जिससे उनका आकर्षण और भी बढ़ जाता था.
मैनें पुस्तकालय में बैठे-बैठे ही ढेर सारी किताबें पढ़ डाली थीं -- मैं घर पर एक ही तरह की कई किताबें या एक ही किताब लगातार कई बार नहीं ले जाना चाहता था. मुझे लगता था कि पुस्तकालय के कर्मचारी मेरी आलोचना करेंगे और यह ऎसी चीज थी जिससे हर हाल में बचा जाना चाहिए था.
एक साल गर्मियों में --मुझे याद नहीं कि कौन सी गर्मियों में-- मैं अफ्रीका से सम्बंधित एक विस्तृत और स्थायी दिवास्वप्न में खोया रहा. मैं पुस्तकालय से बहुत दूर रुन्मारो नामक द्वीप पर था. मैं एक कल्पना में चला गया जिसमें मैं मध्य अफ्रीका में एक अभियान दल का नेतृत्व कर रहा था. मैं रुन्मारो के जंगलों में पैदल ही भटकता रहता था और अफ्रीका के एक बड़े से नक़्शे पर बिन्दुओं की एक रेखा के माध्यम से इस बात का हिसाब रखा करता कि मोटा-मोटी मैं कितनी दूरी तय कर चुका था. पूरे अफ्रीका महाद्वीप का यह नक्शा भी मैनें ही खींचा था. उदाहरण के लिए यदि मैं रुन्मारो द्वीप पर किसी सप्ताह के दौरान 120 किलोमीटर चलता था तो मैं नक़्शे पर 120 किलोमीटर तक निशान लगा लेता था. कोई ख़ास दूरी नहीं.
पहले मैनें अपने अभियान की शुरूआत पूर्वी तट से करने का विचार किया था, लगभग उसी जगह से जहां से कि स्टैनले ने शुरू किया था. मगर तब सबसे मजेदार जगहों तक पहुँचने के लिए मुझे बहुत अधिक दूरी तय करनी पड़ती. फिर मैनें अपना इरादा बदल दिया और कल्पना किया कि अलबर्ट न्यान्सा तक की दूरी मैनें कार से तय कर डाली है. इस जगह आकर वास्तव में पैदल अभियान की शुरूआत हुई. अब मेरे पास गर्मियां ख़त्म होने के पहले इतूरी वनप्रदेश को नाप डालने का मुनासिब मौक़ा था.
यह सामान ढोने वाले वाहक वगैरह के साथ उन्नीसवीं शताब्दी का एक अभियान दल था. हालांकि मैं पूरी तरह से अवगत नहीं था कि अब यह यात्रा का अप्रचलित और लुप्तप्राय तरीका है. अफ्रीका बदल चुका था. ब्रिटेन संरक्षित सोमाली प्रदेश में युद्ध जारी था; वह सुर्ख़ियों में था. युद्ध में टैंक संलग्न थे. वास्तव में वह पहला ऐसा क्षेत्र था जहां मित्र राष्ट्र बढ़त होने का दावा कर सकते थे --मैनें निस्संदेह इस बात पर उचित ध्यान दिया-- और अबिसीनिया धुरी राष्ट्रों से मुक्त कराया जाने वाला पहला देश बना था.
कुछ सालों के बाद जब अफ्रीका का मेरा सपना फिर से लौटा तो उसका आधुनिकीकरण हो चुका था और अब वह लगभग यथार्थवादी था. मैं एक कीटविज्ञानी बनने और अफ्रीका से कीट एकत्रित करने के बारे में विचार कर रहा था. अब मैं नए रेगिस्तानों की बजाय नई प्रजातियों को खोज निकालना चाहता था.
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तोमस त्रांसत्रोमर Tomas Transtromer Memories Look At Me Translated in Hindi by Manoj Patel
बहुत अद्भुत और रोचक पोस्ट... एक महान लेखक एक वैज्ञानिक भी हो सकता है और यायावर भी...
ReplyDeleteअच्छी जानकारी ..
ReplyDeleteसाहित्य के साथ इतिहास और भूगोल का बेहतरीन समन्वय ......बहुत अच्छा लगा .......
ReplyDeleteसाथी मैं बहुत कम कमेन्ट लिखता हूँ लेकिन आपको नियमित पढ़ता हूँ | आप दुर्लभ और बहुमूल्य साहित्य देते हैं | आपका बहुत बहुत आभार और हार्दिक शुभकामनाएं |
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