'आक्युपाई वाल स्ट्रीट' आन्दोलन के समर्थन में अमेरिकी लेखक जोनाथन लेथम ने कुछ मौजूं लघुकथाएं/ चुटकुले लिखे हैं और और उन्हें अमेरिकी सन्दर्भों से जोड़ते हुए विश्लेषित किया है. चुटकुले प्रस्तुत हैं जो हमारे लिए भी कम मौजूं नहीं हैं...
लाश को गुदगुदी : जोनाथन लेथम
(अनुवाद : मनोज पटेल)
एक आदमी एक डाक्टर के पास गया और अपनी तकलीफ बताई कि वह मर चुका है. डाक्टर ने उससे कहा कि यह बिलकुल गलत है क्योंकि वह तो ज़िंदा है और एक छोटी सी प्रस्तुति से वह इसे साबित भी कर सकता है. डाक्टर ने पूछा, "क्या किसी लाश को गुदगुदी लग सकती है?" "आप भी कैसी बात करते हैं" उस आदमी ने कहा, "किसी लाश को गुदगुदी कैसे लग सकती है?" डाक्टर ने मरीज की कमीज उठाकर उसके पेट में गुदगुदी करना शुरू कर दिया. वह आदमी हँसते-हँसते पस्त हो गया. जब उसकी साँसें सामान्य हो गईं तो वह डाक्टर से बोला, "डाक्टर साहब, आप ठीक कह रहे थे, मुझे तो पता ही नहीं था! लाश को भी गुदगुदी लगती है!"
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अंधेरी गली से गुजर रहे एक सिपाही ने देखा कि बिजली के खम्भे के नीचे एक शराबी घुटनों के बल रेंग सा रहा है. पूछने पर शराबी ने बताया कि वह अपनी खोई हुई चाभियाँ खोज रहा है. सिपाही ने भी तुरंत नीचे झुककर चाभियाँ खोजना शुरू कर दिया. कई बार फुटपाथ और नाली को छान चुकने के बाद सिपाही को पूछने की सुध आई, "तुम्हें पक्का है न कि तुम्हारी चाभियाँ यहीं खोई थीं?" शराबी ने अपने पीछे अंधेरी गली की तरफ इशारा करते हुए जवाब दिया, "अरे नहीं, चाभियाँ तो कोई पचास गज पीछे वहां गुम हुईं थीं." "अच्छी बात है, तो फिर तुम यहाँ क्यों खोज रहे हो?" सिपाही ने पूछा. शराबी ने जवाब दिया, "यहाँ कितना बेहतर उजाला है."
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एक परेशान हाल परिवार भ्रम के शिकार अपने बच्चे को लेकर मनोचिकित्सक के पास पहुंचा और बताया कि इस बच्चे को लगता है कि वह मुर्गी है. डाक्टर ने उसकी जांच की और पाया कि सचमुच उसे यही लगता है कि वह बाड़े में रहने वाली और परों वाली एक मुर्गी है. वह पिता को एक किनारे ले गया और मनोरोग दूर करने वाली कुछ हल्की दवाइयों का नुस्खा दिया. यह भी बताया कि इन दवाओं से कोई अंदरूनी गड़बड़ी भले ही न ठीक हो मगर यह रोग के लक्षणों को कम जरूर कर देगी और बच्चा अपने आप को मुर्गी नहीं समझेगा. "मगर हम ऐसा नहीं कर सकते." बच्चे के पिता ने कहा. "क्यों भला?" डाक्टर ने पूछा. पिता का जवाब था, "क्योंकि वह इतना बड़ा हो चुका है कि अब नाकाम नहीं हो सकता -- मेरा मतलब कि हमें अण्डों की भी तो जरूरत है."
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Manoj Patel
in chutkulo me kyaa gajb ke humerus aur satirical uktiyan hai... mujhe to sahitaya ka ek alag vidha jaisa lag raha hai...
ReplyDeletesheshnath
wah maza aa gaya jokes pad kar
ReplyDelete:D :D
ReplyDeleteयहाँ कितना बेहतर उजाला है
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