Friday, November 25, 2011

वादी सादेह : ज़िंदगी

वादी सादेह की एक कविता... 


ज़िंदगी : वादी सादेह 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

यूं ही वक़्त बिताते हुए 
उसने एक गुलदस्ते की तस्वीर बनाई 
और एक फूल बना दिया गुलदस्ते में,
खुशबू उठने लगी कागज़ से. 
उसने एक सुराही की तस्वीर बनाई 
और थोड़ा सा पानी पीकर सुराही से 
कुछ पानी डाल दिया फूल में भी. 
पलंग के साथ 
एक कमरे का खाका खींचा उसने 
और फिर सो गया. 
जागने के बाद 
उसने एक समुद्र उकेरा, 
एक अथाह समुद्र, 
जो बहा ले गया उसे 
               :: :: :: 
Manoj Patel   

5 comments:

  1. सच! हम ही तो बुनते हैं... बनाते हैं अपने आप को ही बहा ले जाने वाला समुद्र!
    यही तो जीवन है!
    एक अकाट्य सत्य को अलग अंदाज़ में हमारे सामने रखती हुई कविता का सुन्दर अनुवाद!

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  2. सहज और संप्रेषित ........

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  3. कल्पनाओं से भरी अच्छी कविता .....!!

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  4. kalpana me ek ytharth bhi hai . thanks.

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