Friday, November 4, 2011

दून्या मिखाइल : खेल


दून्या मिखाइल की कविता...



खेल : दून्या मिखाइल 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

वह एक मामूली प्यादा है.
हमेशा झपट पड़ता है अगले खाने पर.
वह बाएँ या दाएं नहीं मुड़ता 
और पीछे पलटकर भी नहीं देखता.
वह एक नासमझ रानी द्वारा संचालित होता है 
जो बिसात के एक सिरे से दूसरे सिरे तक चल सकती है 
सीधे या तिरछे. 
वह नहीं थकती, तमगे ढोते 
और ऊँट को कोसते हुए. 
वह एक मामूली रानी है 
एक लापरवाह राजा द्वारा संचालित होने वाली 
जो हर रोज गिनता है खानों को 
और दावा करता है कि कम हो रहे हैं वे.
वह सजाता है हाथी और घोड़ों को 
और एक सख्त प्रतिद्वंदी की करता है कामना. 
वह एक मामूली राजा है 
एक तजुर्बेकार खिलाड़ी द्वारा संचालित होने वाला 
जो अपना सर घिसता है 
और एक अंतहीन खेल में बर्बाद करता है वक़्त अपना.
वह एक मामूली खिलाड़ी है 
एक सूनी ज़िंदगी द्वारा संचालित होने वाला 
किसी काले या सफ़ेद के बिना.
वह एक मामूली ज़िंदगी है 
एक भौचक्के ईश्वर द्वारा संचालित होने वाली 
जिसने कोशिश की थी कभी मिट्टी से खेलने की. 
वह एक मामूली ईश्वर है.
उसे नहीं पता कि 
कैसे छुटकारा पाया जाए 
अपनी दुविधा से. 
                    :: :: ::

(नई बात ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित)

1 comment:

  1. खेल के माध्यम से कितने सत्य उद्घाटित करती रचना!

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