कवि, आलोचक और अध्यापक थामस देवानी ने यह कविता 'आक्युपाई वाल स्ट्रीट' आन्दोलन के समर्थन में लिखी है. उनके दो कविता संग्रह और कथेतर गद्य की एक किताब प्रकाशित हो चुकी है. पिछली १८ नवम्बर को आक्युपाई वाल स्ट्रीट आन्दोलन के दौरान उन्होंने ह्युमन माइक्रोफोन के जरिए ज़ुकोटी पार्क में इस कविता का पाठ किया था.
मैं तुम्हें कैसे खोज पाऊंगा? : थामस देवानी
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैं एक लाल हैट लगाए हुए हूँ उसने बताया
मैनें कहा ठीक है, मैं तुम्हें ढूंढ़ लूंगा
तुम्हीं दिखती रही मुझे हर लाल हैट में
मुझे रोक लिया उन लाल हैटों ने
फिर नजर आए और भी लाल हैट
तुमने सन्देश भेजा मोबाइल पर कि मुझे देर हो गई है
फिर बताया कि अब यहाँ हूँ मैं
थोड़ा नमी थी मौसम में मगर बारिश नहीं हो रही थी
मैं यहाँ हूँ, यहाँ हूँ तुमने बताया
फिर भी मैं नहीं देख पाया तुम्हें
मुझसे एक आदमी ने नौकरी करने के लिए कहा, तुमने बताया
फिर तुमने क्या जवाब दिया?
नौकरियाँ तो आती-जाती रहती हैं मगर मुझे कुछ और करना है
वह काम जो हमारे सामने है
यह बड़ा और असली काम है
मगर क्या यही बहुत है?
हाँ, अवश्य
मगर नहीं, यह बहुत नहीं है
बहुत हो चुका, बहुत हो चुका
हाँ, बहुत हो चुका
और फिर बहुत सी बहुत हो चुका की आवाजें
उठने लगीं सड़क से
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Manoj Patel
अन्तिम पँक्तियाँ आवाहन करती हैं लेकिन बहुत अच्छी या गम्भीरता नहीं लगी…
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें, आभारी होऊंगा .
'एक काम जो हमारे सामने है / यह बड़ा और असली काम है'. सच में यह बड़ा और असली काम है, क्योंकि इससे जूझे बिना नौकरी-वौकरी के बारे में तो सोचना भी व्यर्थ है. मुश्किल समय में ही कठिन फैसले लिए जाते हैं. जिन्हें ये पंक्तियाँ गंभीर न लगें, तय मानिए उन्हें जीवन और जगत के प्रश्न परेशान करते ही नहीं.
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