पिछली १० दिसंबर को २०११ का नोबेल साहित्य पुरस्कार टॉमस ट्रांसट्रोमर को प्रदान कर दिया गया. इस कार्यक्रम का वीडियो यहाँ उपलब्ध है. उधर मिनियापोलिस में उनके पुराने दोस्त और अनुवादक, कवि राबर्ट ब्लाय ने उन्हें नोबेल मिलने का जश्न मनाते हुए एक चर्च में उनकी कविताओं का पाठ किया. आज फिर से पढ़ते हैं टॉमस ट्रांसट्रोमर की एक कविता...
नोबेल पुरस्कार से समानित होते टॉमस ट्रांसट्रोमर |
रेल की पटरियां : टॉमस ट्रांसट्रोमर
(अनुवाद : मनोज पटेल)
रात के २ बजे : चांदनी छिटकी हुई. रेलगाड़ी रुक गई है
बीच मैदान में. दूर किसी कस्बे से रोशनी के बिंदु,
क्षितिज पर निरुत्साह टिमटिमाते हुए.
जैसे कोई इंसान इतना गहरे डूब गया हो अपने स्वप्न में
कि अपने कमरे में वापस लौटने पर
उसे याद ही न आए कि वह कभी आया भी था वहां.
या जैसे कोई इंसान इतना गहरे धंस गया हो अपनी बीमारी में
कि उसकी सारी ज़िंदगी कुछ टिमटिमाते बिन्दुओं सी हो जाए,
क्षितिज पर कमजोर और उदास एक छत्ते जैसी.
पूरी तरह स्थिर खड़ी है रेलगाड़ी.
रात के २ बजे : चटक चांदनी छिटकी हुई, तारे थोड़े से.
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Manoj Patel
एक अपने में डूबे और बीमार आदमी की मनोदशा का रेलगाड़ी की तरह ठहरे हुए पल में दूर टिमटिमाते कस्बे से सामी स्थापित करती है ,ट्रांसटोमर की प्रभावशाली कविता ! आभार मनोज जी !
ReplyDeleteवस्तुजगत आत्मगत कारणों से कितना और कैसे नियमित- निर्धारित हो जाता है, पीड़ा और अवसाद के क्षणों में !
ReplyDeleteआभार
दिल को छूने वाली कविता !
ReplyDeleteबढ़िया...
ReplyDeleteआपको शुक्रिया ..बेहतरीन ब्लॉग देने के लिए..