दून्या मिखाइल की एक और कविता...
नया साल : दून्या मिखाइल
(अनुवाद : मनोज पटेल)
1
कोई दस्तक दे रहा है दरवाजे पर.
कितना निराशाजनक है यह...
कि तुम नहीं, नया साल आया है.
2
मुझे नहीं पता कि कैसे तुम्हारी गैरहाजिरी जोडूँ अपनी ज़िंदगी में.
नहीं मालूम कि कैसे इसमें से घटा दूं खुद को.
नहीं मालूम कि कैसे भाग दूं इसे
प्रयोगशाला की शीशियों के बीच.
3
वक़्त ठहर गया बारह बजे
और इसने चकरा दिया घड़ीसाज को.
कोई गड़बड़ी नहीं थी घड़ी में.
बस बात इतनी सी थी कि सूइयां
भूल गईं दुनिया को, हमआगोश होकर.
1
कोई दस्तक दे रहा है दरवाजे पर.
कितना निराशाजनक है यह...
कि तुम नहीं, नया साल आया है.
2
मुझे नहीं पता कि कैसे तुम्हारी गैरहाजिरी जोडूँ अपनी ज़िंदगी में.
नहीं मालूम कि कैसे इसमें से घटा दूं खुद को.
नहीं मालूम कि कैसे भाग दूं इसे
प्रयोगशाला की शीशियों के बीच.
3
वक़्त ठहर गया बारह बजे
और इसने चकरा दिया घड़ीसाज को.
कोई गड़बड़ी नहीं थी घड़ी में.
बस बात इतनी सी थी कि सूइयां
भूल गईं दुनिया को, हमआगोश होकर.
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Manoj Patel, Blogger and Translator

नव वर्ष की शुभकामनाएँ मनोज ..
ReplyDeleteअनुवाद बहुत सुन्दर है .
गज़ब की कविताएँ भाई...इससे बेहतर क्या होगा नए साल पर...
ReplyDeleteNice Poem, This is the Best Hindi Blog,Keap it up.
ReplyDeleteHappy New Year!!
N B
बेहतरीन | हमेशा की तरह
ReplyDeleteसुन्दर ।
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