मार्गरेट रैंडाल्ल का जन्म १९३६ में न्यूयार्क में हुआ था. उन्होंने बहुत से साल लातीनी अमेरिका में बिताए हैं. वे एक नारीवादी कवि, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनकी पहचान एक बेहतरीन फोटोग्राफर के रूप में भी है. यहाँ प्रस्तुत कविता का सन्दर्भ यह है कि १९८४ में अमेरिका लौटने पर अमेरिकी सरकार ने उनके देश निकाले का फरमान सुना दिया था क्योंकि उनके लेखन को संयुक्त राज्य अमेरिका की सुव्यवस्था एवं खुशहाली के विपरीत पाया गया. उन्होंने उस वाल्टर मैक्कारन क़ानून के खिलाफ लम्बी लड़ाई लड़ी और अंततः १९८९ में अपना मुकदमा जीता. इस मुक़दमे में सरकार ने बार-बार यह साबित करने की कोशिश की कि वे 'कम्युनिस्ट' थीं. सबूत के रूप में वे पत्रिकाएँ पेश की गईं जिनमें उनकी कविताएँ 'कम्युनिस्टों' की कविताओं के साथ छपी थीं. चे की मृत्यु पर लिखी गई उनकी कविता को भी सबूत के रूप में पेश किया गया.
अप्रवासन क़ानून : मार्गरेट रैंडाल्ल
(अनुवाद : मनोज पटेल)
जब मैं पूछती हूँ जानकारों से
"कितना समय बचा है मेरे पास?"
तो मैं नहीं चाहती जवाब
वर्षों या दलीलों के रूप में.
मैं जानना चाहती हूँ
कि पर्याप्त घंटे हैं या नहीं
इस रिश्ते को सुधारने के लिए,
किताब को उसकी पैदाइश तक देखने के लिए,
अपने पिता के बगल
उनके सफ़र में साथ खड़े होने के लिए.
जानना चाहती हूँ कि चमीसा के पौधे में
कितने मौसमों तक फूलेंगे पीले फूल
उसके बाद स्लेटी-हरे
और फिर दुबारा पीले
मगर थोड़ा हल्के पीले इस बार,
जानना चाहती हूँ कि कितने
कैक्टस के लाल फूल खिलेंगे मेरे दरवाजे पर.
भाषा के पीछे उस तरह नहीं फिरुंगी
जैसे एक कुत्ता चलता है अपनी पूंछ दबाए पैरों के बीच.
मैं समय चाहती हूँ संगीत के समतुल्य,
ब्रेड की खमीर उठने में लगने वाले घंटे,
और मेल-मिलाप से गहरे हुए साल.
वर्तमान में हमेशा समाया रहता है अतीत का एक स्पंदन.
मुट्ठी भर भविष्य दे दो मुझे
अपने होंठों पर मलने के लिए.
अलबुकर्क, अक्टूबर १९८५
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Manoj Patel
वर्तमान अतीत और भविष्य के बारे बात करते हुए कविता ने कल आज और कल को नए अर्थ दिए हैं!
ReplyDeleteवर्तमान में हमेशा समाया रहता है अतीत का स्पंदन... इसलिए चाहिए मुट्ठी भर भविष्य! सुन्दर विवेचना!
बहुत प्रभावशाली कविता...
ReplyDeleteकितने मौसमों तक खिलेंगे पीले फूल .................
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ,हृदयस्पर्शी कविता !
बहुत ही प्रभावी कविता ...मनोज जी साधुवाद आपको !
ReplyDeleteमुट्ठी भर भविष्य दे दो मुझे
ReplyDeleteअपने होंठों पर मलने के लिए...
क्या बात है!
वैसे एक बात पूछूं- रोज सुबह इतनी धारदार कविताएँ आप कहां से ले आते हैं?
वाह बेहतरीन अनुवाद.प्रभावशाली कविता का .बहुत ही सुन्दर.
ReplyDeletehiu
ReplyDeleteमुट्ठी भर भविष्य दे दो .......!!
ReplyDeleteबेहद प्रभावशाली कविता
ReplyDelete"वर्तमान में हमेशा समाया रहता है अतीत का एक स्पंदन /मुट्ठीभर भविष्य दे दो मुझे / अपने होठों पर मलने के लिए." बेहद अर्थगर्भित पंक्तियां.
ReplyDeleteमुट्ठी भर भविष्य...
ReplyDelete..वाह..