चेस्लाव मिलोश की एक कविता...
सूरज : चेस्लाव मिलोश
(अनुवाद : मनोज पटेल)
सारे रंग आते हैं सूरज से. मगर उसका नहीं है
कोई एक रंग, क्योंकि सारे रंग समाए हैं उसके भीतर.
और पूरी पृथ्वी है एक कविता की तरह
जबकि ऊपर सूरज प्रतीक है कलाकार का.
जो कोई भी रंगना चाहता है बहुरंगी दुनिया को
उसे कभी मत देखने दो सीधे सूरज की तरफ
वरना वह गँवा बैठेगा अपनी देखी हुई चीजों की स्मृति.
केवल जलते हुए आंसू रह जाएंगे उसकी आँखों में.
उसे घुटनों के बल बैठकर झुकाने दो अपना चेहरा घास की ओर,
और देखने दो जमीन से परावर्तित प्रकाश को.
वहां उसे मिलेंगी वे सारी चीजें जो हम गँवा चुके हैं :
तारे और गुलाब, शाम और सुबहें तमाम.
वारसा, १९४८
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manojpatel
"पूरी पृथ्वी है एक कविता की तरह..... वहां मिलेंगी उसे वो सारी चीज़ें जो हम गंवा चुके हैं....." ग़ज़ब रूपक बांधा है.
ReplyDeleteवाकई सूरज एक कलाकार है जो आकाश को नीला रंगता है और धरती को हरा...प्रकृति के निकटतम ले जाती हुई बहुत सुंदर कविता !
ReplyDeleteBahut badhiya.. Reena Satin
ReplyDeleteपृथ्वी को कविता और सूरज को कलाकार का प्रतीक बताने वाली इस कविता में शायद यह सन्देश है की हमें महान लेखकों की सीधे नक़ल न करके अपनी जड़ों और समय से जुड़कर लिखना चाहिए.महान रचनाओं का अध्ययन जरूर करना चाहिए अपनी समझ विकसित करने के लिए.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-737:चर्चाकार-दिलबाग विर्क