नाओमी शिहाब न्ये की एक कविता इस सन्दर्भ के साथ कि 1952 में महान गायक पॉल रॉब्सन को वैंकूवर, कनाडा में गाने के लिए आमंत्रित किया गया तो स्टेट डिपार्टमेंट ने उन्हें देश छोड़ने की इजाजत नहीं दी थी, बावजूद इसके कि अमेरिका से कनाडा जाने के लिए पासपोर्ट तक कि दरकार नहीं थी. उसके बाद जो हुआ उसे आप इस कविता में पढ़ सकते हैं...
सरहद पार : नाओमी शिहाब न्ये
(अनुवाद : मनोज पटेल)
अमेरिका की उत्तरी सरहद पर
खड़े हो
पाल राब्सन ने गाया कनाडा के लिए
जहां फोल्डिंग कुर्सियों पर बैठी
भारी भीड़
उन्हें सुनने की खातिर
कर रही थी इंतज़ार.
गाया उन्होंने कनाडा में
उनकी आवाज़ ने पार की
अमेरिका की सरहद
जबकि उनकी देह को
नहीं थी इजाज़त
सरहद पार करने की.
फिर से याद दिलाओ हमें
बहादुर दोस्त.
किन मुल्कों में गाना है हमें ?
पार करना है हमें किन सरहदों को ?
किन गीतों को बहुत दूर से आना है
हमारी तरफ घूमते हुए
गाढ़ा करने के वास्ते हमारे दिनों को ?
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Manoj Patel
रोमांचकारी। ऐसा भी हुआ। आवाज को देह नहीं रोक सकती।
ReplyDeleteamazing!
ReplyDeleteआप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
ReplyDeleteइतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
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