आज वेरा पावलोवा की एक नई कविता पढ़ते हैं...
वेरा पावलोवा की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
काले कौओं में बदल गई हैं अबाबीलें.
मधुमक्खी पालने वालों ने सीलबंद कर दी है शहद.
समय आ गया है अन्त्येष्टियों की खातिर भुगतान करने का.
कब्र के पत्थर तैयार करवाने का समय आ गया है.
तूफानी और बरसाती रातें
खड़खड़ाती हैं खिड़कियों के पल्लों को.
पूरा करने का समय आ गया है
मोजार्ट के अधूरे पड़े शोक-गीतों को.
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Manoj Patel
वेरा की यही सादगी मुझे उसका फैन बनाती है...
ReplyDeleteलोमहर्षक हालात के शब्द-दृश्य... प्रभावशाली रचना... उम्दा अनुवाद... आभार मनोज जी...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_07.html
sundar
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