Wednesday, December 7, 2011

वेरा पावलोवा की कविता

आज वेरा पावलोवा की एक नई कविता पढ़ते हैं... 














वेरा पावलोवा की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

काले कौओं में बदल गई हैं अबाबीलें.  
मधुमक्खी पालने वालों ने सीलबंद कर दी है शहद.  
समय आ गया है अन्त्येष्टियों की खातिर भुगतान करने का.
कब्र के पत्थर तैयार करवाने का समय आ गया है.
तूफानी और बरसाती रातें 
खड़खड़ाती हैं खिड़कियों के पल्लों को.
पूरा करने का समय आ गया है 
मोजार्ट के अधूरे पड़े शोक-गीतों को. 
                    :: :: :: 
Manoj Patel 

4 comments:

  1. वेरा की यही सादगी मुझे उसका फैन बनाती है...

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  2. लोमहर्षक हालात के शब्‍द-दृश्‍य... प्रभावशाली रचना... उम्‍दा अनुवाद... आभार मनोज जी...

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  3. बहुत सुंदर रचना ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_07.html

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