दून्या मिखाइल की डायरी "समुद्र से बिछड़ी एक लहर की डायरी" का एक अंश आप इस ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं. आज प्रस्तुत है एक और अंश...
समुद्र से बिछड़ी एक लहर की डायरी : दून्या मिखाइल
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मेरे बचपन में तस्वीरें और सारी चीजें श्वेत-श्याम होती थीं.
एक नदी में नाव पर बैठे हुए मैनें अपनी पहली कविता लिखी
कि कैसे लहरें हमारी ज़िंदगी की तरह होती हैं :
पहली के अपने अंजाम तक पहुँचते-पहुँचते
दूसरी चल पड़ती है किनारे की तरफ.
मेरी चचेरी बहन ने इस कविता के कागज़ से एक नाव बनाई
और तैरा दिया उसे पानी में -- हम उसे दूर बहते हुए देखते रहे.
मेरी एक तस्वीर है अपनी पसंदीदा पहली किताब पढ़ते हुए
उस हाथी की कहानी जो चल पड़ता है हाथियों के कब्रिस्तान की तरफ
जब उसे पता चलता है कि वह मरने वाला है.
अपनी शादी के जोड़े में मेरी माँ
मेरे पिता से बहुत कम उम्र की लग रही हैं.
"मैनें उन्हें शादी के पहले देखा भी नहीं था," माँ ने मुझे बताया.
"उन दिनों पति नदी की मछलियों की तरह होते थे --
तुम जान नहीं सकती थी कि वे भले हैं या बुरे.
मगर खुदा का शुक्र है कि तुम्हारे पिता दुनिया के सबसे अच्छे इंसान थे."
कुछ तस्वीरों में मेरी माँ ने किमोनो या छोटे स्कर्ट पहन रखे हैं.
"वे भी क्या दिन थे," वह कह पड़ती हैं.
एक बार मैं सारी रात जगती रही सांता क्लाज के इंतज़ार में.
मैं सिर्फ तोहफे पाने की बजाय उनसे खुद मिलना चाहती थी.
सुबह मेरे माता-पिता ने मुझे जागता पाया
और उन्हें मुझे बताना पड़ा कि कोई सांता क्लाज वगैरह नहीं था.
उस क्रिसमस मैनें दोनों ही खो दिए - सांता क्लाज, और उनका तोहफा भी.
पड़ोस का एक लड़का मेरे साथ है एक तस्वीर में
जिसमें मेरे बाल चोटियों में बंधे हैं. एक बार
उसने एक चिट्ठी थमाई थी मुझे , जिसमें लिखा था
तुम्हें प्यार की कोई समझ ही नहीं है बच्ची."
यहाँ मैं रो रही हूँ और छिपी हूँ पलंग के नीचे
जब उन्होंने मेरी चोटियाँ काट दी थीं. किसी ने
मुझे मुंह पर चूमा था और मुझे लगा था कि
इतना काफी है मेरे पैर भारी करने के लिए.
पक्का करने के लिए अपना पेट भी टटोला था मैनें.
इसमें मैं अपनी दादी के साथ हूँ सेम खाती हुई
और यह सोचती हुई कि मैं पक्का जन्नत में ही जाऊंगी
क्योंकि उन्होंने बताया था कि सेम खाने वाले लोगों के लिए
जन्नत में जगह महफूज होती है.
मेरा पहला कन्फेशन एक पादरी के सामने हुआ.
मैनें कुछ पाप गढ़े जिन्हें मैंनें किया ही नहीं था
ताकि मेरे पास कहने के लिए कुछ हो जाए.
एक पुरानी भाषा में हमने कुछ स्तोत्र गाए जिन्हें मैं समझ नहीं पाई.
मेरे माता-पिता हमेशा मुझसे खड़ी बोली में बात करते थे.
मठ में मैनें नन बनने के बारे में सोचा
सिर्फ इस लिए कि मेरे पास सार्वजनिक जिम्मेदारियों से दूर
अपनी खुद की एक जगह हो. मगर मैनें अपना इरादा बदल दिया
यह पता चलने पर कि मुझे एक वर्दी पहननी पड़ेगी
और पालन करना होगा कड़े नियमों का.
मैं शतरंज खेला करती थी
अपने विचारों और योजनाओं का मोहरों से मिलान करने के लिए.
मोहरे प्रतीक थे जो, कविता में शब्दों की तरह, अपनी चाल के साथ
निर्माण किया करते थे संभावनाओं का. मैं शतरंज की चैम्पियन थी ईराक की,
और समय फिसलता जाता था काले और सफ़ेद वर्गों के बीच.
जब जंग शुरू हुई मैनें शतरंज खेलना छोड़ दिया :
कोई मतलब नहीं था इतने प्यादों को कुर्बान करने का
सिर्फ एक बादशाह को बचाने के लिए.
एक दिन प्राथमिक पाठशाला से घर लौटते हुए मैं रास्ता भूल गई
तो मैं उस दूकान पर गई जहां से मेरे दादा मुझे च्यूइंग गम दिलाया करते थे.
दुकानदार ने मुझसे पूछा कि मैं मुसलमान थी या ईसाई.
मुझे नहीं पता था.
उसने मुझसे जानना चाहा कि मैं मस्जिद चलूंगी या गिरजाघर
मगर मैं तो अपने दादा के पास जाना चाहती थी.
मेरे दादा दूकान पर मुझे मिल गए
और च्यूइंग गम दिलाई हमेशा की तरह.
स्कूल के चौक में, दूसरी लड़कियों के साथ,
मैं राष्ट्र गान गाया करती थी झंडे के सामने :
"वतन जो अपने पंख फैलाता है क्षितिज पर
और सभ्यता के गौरव को पहनता है स्कार्फ की तरह."
मेरी टीचर सारी चीजों का दोष मढ़ती थीं गुलाम बनाने वालों पर.
जब मैनें पूछा कि वह कौन था, वे बोलीं, "जाहिर है, ब्रिटेन."
जीव विज्ञान की कक्षा में टीचर ने हमें अमीबा के बारे में पढ़ाया.
"अमीबा के पास एक आँख और एक पैर होता है," उन्होंने बताया,
"मगर उसका कोई वास्तविक स्वरुप नहीं होता.
तुम जैसे चाहो उसका चित्र बना सकती हो."
तो मैनें पाया कि कविता एक अमीबा है :
इसके पास एक आँख होती है देखने के लिए, एक पैर
निशान छोड़ने के लिए, और एक लचीला स्वरुप.
मगर अपने कमरे में अपना होमवर्क करते हुए
मैनें सिर्फ अर्थहीन वाक्य ही लिखे.
कुछ तस्वीरें जो मुझे याद हैं
कभी किसी कैमरे से नहीं खींची गईं :
जुदाई के समय मेरे दिल का जोरों से धड़कना
अंतहीन कंपन पैदा करते हुए बमों का फटना
मुसाफिरों के उतरते समय एक नाव का हिलना
एक चिड़िया की आँखों में एक टहनी का कंपन
एक शब्द से नरक फूट पड़ना
अपनी रिहाइश की जगह से हवा का भागना
दीवार से टकराकर तेजी से वापस आती गेदें जैसे गुस्से के लमहे
एक मरे हुए कुत्ते को लेकर घूमती एक पागल औरत
एक प्रयोगशाला में एक उत्तेजित बन्दर
चारो तरफ टूटे हुए कांच के टुकड़े
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Manoj Patel Translations, Manoj Patel's Blog
मरने वाला हाथाअ कबिस्तान की ओर…भारत के अलावे पति को बिना देखे शादी की परम्परा वहाँ भी…सांता क्लाज की असलियत…पाँव भारी पर प्रेमरोग फिल्म याद आई…
ReplyDeleteकोई मतलब वाकई नहीं था …एक बादशाह को बचाने के लिए इतने प्यादों को मरने के लिए…ईसाई-मुसलमान कुछ नहीं…बस दादाजी की पोती…
मज़ा आ गया पढ़ते पढ़ते।
ReplyDeleteकविता पढ़ते पढ़ते आप किसी दूसरे ही लोक में पहुँच जाते है, बेहद प्रभावशाली कविता...
ReplyDeleteदुन्या मिखाइल को पढ़ना अपने आप में एक अनुभव है!
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता |
ReplyDeletesamvedna ke naye khitijo ko gadhne wali kavita.
ReplyDeleteबहुत बहुत अच्छी
ReplyDeleteबहुत बहुत अच्छी
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