आज पढ़ते हैं नाजिम हिकमत की कविता, 'तुम्हारी वजह से'...
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तुम्हारी वजह से : नाजिम हिकमत
(अनुवाद : मनोज पटेल)
तुम्हारी वजह से, खरबूजे की फांक सा हो जाता है हर एक दिन
मिट्टी की मीठी खुशबू से महकता हुआ.
तुम्हारी वजह से, सारे फल बढ़े आते हैं मेरी तरफ
जैसे कि धूप होऊँ मैं.
तुम्हारा शुक्रिया कि मैं ज़िंदा रहा उम्मीद की शहद पर.
तुम्हारी वजह से ही धड़कता है मेरा दिल.
तुम्हारी वजह से, मेरी सबसे तनहा रातें भी
मुस्कराती हैं तुम्हारी दीवार पर लगी अनाटोलियाई तस्वीर की तरह.
अगर कहीं मेरा सफ़र ख़त्म हो अपने शहर पहुँचने के पहले ही,
तुम्हारी वजह से मैं सो चुका हूँ गुलाब की एक वाटिका में.
तुम्हारी वजह से मैनें दाखिल नहीं होने दिया मौत को,
जो मुलायम कपड़ों में लिपटी
गाना गाती दस्तक दे रही थी मेरे दरवाजे पर
बुलाते हुए मुझे चिर शान्ति की ओर.
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Manoj Patel
तुम्हारी वजह से रच पाता हूँ मैं इतने सुंदर गीत और कवितायें...तुम हो तो मैं वह हूँ जो होना चाहता हूँ...बहुत सुंदर!
ReplyDeleteइस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवजह हो कोई ऐसी तो लिखना... जीना सब सार्थक हो जाते हैं...! अनुवाद के माध्यम से कविता हम तक पहुँचाने के लिए 'पढ़ते पढ़ते' धन्यवाद का पात्र है!
ReplyDeleteआभार मनोज जी!
बहुत सुन्दर प्रेम कविता ! आभार मनोज जी , आपकी वजह से इतनी सुन्दर रचनाएँ ,हम तक सहज अनुवाद के पंखों पर उड़ती हुई आती हैं !
ReplyDeleteतनहा समय कट जाता है,पढ़ते-पढ़ते.......साभार .....!!
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