Saturday, December 24, 2011

चेस्लाव मिलोश : गोल बिंदियों की छींट वाली पोशाक

चेस्लाव मिलोश की एक और कविता...

 

गोल बिंदियों की छींट वाली एक पोशाक : चेस्लाव मिलोश 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

उसकी गोल बिंदियों की छींट वाली पोशाक -- बस 
इतना ही जानता हूँ उसके बारे में. 
एक बार, अपनी बन्दूक लिए एक जंगल में चुपचाप घूमते हुए 
मैं ठोकर खा गया था उससे, जो खाली जगह पर एक कम्बल बिछाए  
लेटी हुई थी माइकल के साथ. 
एक छोटी सी मांसल चीज,
लोग बताते थे कि वह किसी अधिकारी की बीवी है.
जरूर ज़ोसिया रहा होगा उसका नाम.  

शाम हो गई थी मुझे काले समुन्दर तक पहुँचते-पहुँचते. 
वे सभी मर चुके हैं, यह बहुत पहले की बात है. 

तुम्हें शान्ति मिले ज़ोसिया, और तुम्हारे कारनामों को भी. 

छुट्टी बिताने जाते हुए, ऐसा नहीं होता 
कि उम्मीद की जाए कुछ घटित हो जाने की : 
इश्तहारों में से काले बालों वाला कोई आदमी, 
या माइकल की तरह कोई सुनहरे बालों वाला,  
बस रोजमर्रा की ऊब से थोड़े बदलाव के तौर पर, 
फोन करे प्रेमिका को, चाय की दूकान में केक लेने जैसा. 
हम ऊब और जिज्ञासा से प्रेरित होते हैं पाप की तरफ, 
मगर उसके अलावा मासूम होते हैं हम. 

तुम्हें समझना चाहिए ज़ोसिया, कैसी मुश्किल में होता हूँ मैं 
जब ध्यान से सोचना चाहता हूँ तुम्हारी ज़िंदगी के बारे में 
और यहाँ, जहां तुम मेरी हो, पा जाता हूँ वह जो अनोखा है तुम्हारे भीतर,
हालांकि वह छिपा होता है आम बातों के नीचे. 

शायद तुमने मदद की हो कोई मोर्चा बाँधने में. 
या शायद खुद को कुर्बान किया हो किसी बीमार बच्चे की खातिर.
शायद तुम्हें तकलीफ रही हो किसी जख्म या बीमारी की वजह से, 
और पहुँच गई हो समर्पण की उच्चावस्था में. 
जैसा भी रहा हो, चाहे तुम नष्ट हो गई अपने जलते हुए शहर के साथ,  
या भटकती फिरी उसमें बूढ़ी होकर, सड़कों को न पहचानते हुए, 
मैं कोशिश करता हूँ हर जगह तुम्हारे साथ होने की, व्यर्थ में ही. 
और सिर्फ स्पर्श कर पाता हूँ तुम्हारे वक्षों की भरपूर गोलाइयों का,  
सफ़ेद बिंदियों की छींट वाली तुम्हारी लाल पोशाक को याद करते हुए.  
                    :: :: :: 
manojpatel 

4 comments:

  1. 'हम ऊब और जिज्ञासा से प्रेरित होते हैं पाप की तरफ़ / मगर उसके अलावा मासूम होते हैं हम...' पूरी कविता इन पंक्तियों के इर्द-गिर्द रची गई लगती है. बहुत अच्छी कविता के उतने ही अच्छे अनुवाद के लिए बधाई.

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  2. कम समझ आयी। श्रोत्रिय साहब के कहने के बाद कुछ संकेत मिले।

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  3. मैं कोशिश करता हूँ हर जगह तेरे साथ होने की .....बहुत अच्छी कविता ....उम्मीद के अनुरूप अनुबाद .....!!

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  4. this poem is like a picture!

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