चेस्लाव मिलोश की एक और कविता...

यह दुनिया : चेस्लाव मिलोश
(अनुवाद : मनोज पटेल)
ऐसा लगता है कि वह सब एक गलतफहमी ही थी.
गंभीरता से ले लिया गया था एक परीक्षण जांच को.
नदियाँ लौट जाएंगी अपने उद्गम की तरफ.
हवा ठहर जाएगी एकदम शांत होकर.
बढ़ने की बजाए पेड़ रुख करेंगे अपनी जड़ों की ओर.
बूढ़े लोग पीछे भागेंगे एक गेंद के, आईने पर एक निगाह --
और फिर से बच्चे हो जाएंगे वे.
मुर्दे ज़िंदा हो जाएंगे, समझ नहीं पाएंगे वे तमाम बातों को
जब तक अघटित नहीं हो जातीं सारी घटित बातें.
कितनी राहत की बात है! चैन की सांस लो तुम
जिसने उठाई है इतनी तकलीफ.
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Manoj Patel

परीक्षण जांच, नदियों का लौटना उद्गम की ओर, पेड़ों का लौटना जड़ों की ओर और घटित का अघटित होना- कुल मिलाकर कविता दो स्तरों पर अर्थ उद्घाटित करती चलती है. कम-से-कम मुझे तो ऐसा ही लगता है.
ReplyDeleteबहुत शानदार कविता ,आभार मनोज जी ! दुनियां जिस गलतफहमी की वजह से बनाई गयी ,किसी परीक्षण के तहत ,उसे वापस कर लिया जायेगा और कवि इसमें एक राहत की बात देख रहा है !
ReplyDeleteकैसी कैसी कल्पना कर लेते हैं..!
ReplyDeleteतभी तो कहा गया है..
जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि।