Sunday, December 11, 2011

जिबिग्न्यु हर्बर्ट : कोई और सेवा महोदय

जिबिग्न्यु हर्बर्ट की एक और कविता...



कोई और सेवा महोदय : जिबिग्न्यु हर्बर्ट 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

जरूर, कई काम हैं 
खिड़की खोल दो 
तकिया ठीक कर दो 
चाय उड़ेलो कप में 

-- यही सब 
-- बस इतना ही 

दोनों है यह, ज्यादा भी 
और कुछ ख़ास नहीं भी 

क्योंकि 
बहुत ध्यान से 
किया जाना है इसे 

खिड़की खोलना है समूचे बसंत की तरफ 
और तकिए के हिसाब से करना है सर 
                    :: :: :: 
Manoj Patel 

5 comments:

  1. खिड़की खोलना है समूचे बसंत की तरफ...
    यह निश्चित ही बड़ा काम है!
    एक ख़ास कविता का सुन्दर अनुवाद...

    @Manoj ji,
    महोदय, आप निश्चित ही पढ़ते पढ़ते पर बहुत बड़ा काम कर रहे हैं... विभिन्न भाषा के साहित्य को हम तक पहुँचाने की सेवा अतुल्य है:)

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  2. बहुत ध्यान से किया जाना है इसे ...
    खिडकी खोलना है समूचे बसंत की तरफ ...!!!!
    बहुत सुन्दर कविता ...!!!!

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  3. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 12-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  4. बहुत सुंदर कविता...

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  5. बहुत ध्यान से किया जाना है इसे....सुंदर कविता.

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