जिबिग्न्यु हर्बर्ट की एक और कविता...
कोई और सेवा महोदय : जिबिग्न्यु हर्बर्ट
(अनुवाद : मनोज पटेल)
जरूर, कई काम हैं
खिड़की खोल दो
तकिया ठीक कर दो
चाय उड़ेलो कप में
-- यही सब
-- बस इतना ही
दोनों है यह, ज्यादा भी
और कुछ ख़ास नहीं भी
क्योंकि
बहुत ध्यान से
किया जाना है इसे
खिड़की खोलना है समूचे बसंत की तरफ
और तकिए के हिसाब से करना है सर
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Manoj Patel
खिड़की खोलना है समूचे बसंत की तरफ...
ReplyDeleteयह निश्चित ही बड़ा काम है!
एक ख़ास कविता का सुन्दर अनुवाद...
@Manoj ji,
महोदय, आप निश्चित ही पढ़ते पढ़ते पर बहुत बड़ा काम कर रहे हैं... विभिन्न भाषा के साहित्य को हम तक पहुँचाने की सेवा अतुल्य है:)
बहुत ध्यान से किया जाना है इसे ...
ReplyDeleteखिडकी खोलना है समूचे बसंत की तरफ ...!!!!
बहुत सुन्दर कविता ...!!!!
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 12-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता...
ReplyDeleteबहुत ध्यान से किया जाना है इसे....सुंदर कविता.
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