चिली के 'एंटी पोएट' निकानोर पार्रा हाल ही में स्पेन के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 'सर्वेन्टीज पुरस्कार' से नवाजे गए हैं. आज प्रस्तुत है उनकी कविता 'कुर्सी पर सोने वाले कवि की चिट्ठियाँ' के कुछ अंश...
कुर्सी पर सोने वाले कवि की चिट्ठियाँ : निकानोर पार्रा
(अनुवाद : मनोज पटेल)
बड़ा मुश्किल है भरोसा करना उस ईश्वर में
जो छोड़ देता है अपने बच्चों को
उनके हाल पर
बुढ़ापे
और बीमारी के तूफानों की दया पर
मौत की तो कोई बात ही नहीं.
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मैं उन लोगों में से एक हूँ जो स्वागत करते हैं शव वाहनों का.
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यह तो जाहिर है
कि कोई नहीं रहता चाँद पर
कि कुर्सियां मेज हैं
कि तितलियाँ हमेशा फड़फड़ाते रहने वाले फूल हैं
कि सत्य एक सामूहिक त्रुटि है.
कि आत्मा मर जाती है शरीर के साथ.
जाहिर है यह तो
कि झुर्रियां दाग नहीं हैं.
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आसान नहीं मेरे लिए उदास होना
ईमानदारी से कहूं तो
कपाल देखकर भी मुझे आती है हँसी.
क्रास पर सोया हुआ कवि
आपका स्वागत करता है खून के आंसुओं के साथ.
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कवि का काम है
कोरे कागज़ को बेहतर करना
मुझे नहीं लगता कि मुमकिन है यह.
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Manoj Patel
बेहद सुन्दर कवितायेँ..
ReplyDeleteआज सुबह ऐसी ही कविताओं की जरूरत महसूस हो रही थी.आभारी हूँ.
ReplyDeleteक्या स्वागत की जगह अगवानी ठीक रहता ?मूल नहीं देखा है ,फिर भी..
ReplyDeleteअद्भुत ..बहुत सुन्दर कवितायेँ ..
ReplyDeleteधन्यवाद आशुतोष सर, 'अगवानी' तो बेहतर शब्द लग रहा है.
ReplyDeleteईश्वर पर भरोसा न करने से क्या बुढ़ापा नहीं आयेगा या रोग नहीं आएँगे...क्या ख्याल है ?
ReplyDeleteपहला अंश समझ सका और वह महत्वपूर्ण भी लगा। इस तरह का काम हर रोज आप कर रहे हैं, यह भी एक खास किस्म का काम है अन्तर्जाल पर। जारी रहे...
ReplyDeleteकवि का मंतव्य यह नहीं कि रोग, बुढ़ापा आदि से छुटकारा मिल जाएगा, ईश्वर में विश्वास खत्म होते ही. पहली सात पंक्तियां ईश्वर की करुणा विहीनता को ही उजागर करती हैं. यानि ईश्वर दुनियावी पिताओं से भी कम दयालु है, अपनी संतति के प्रति सरोकार-शून्य. मुझे अच्छी लगी कविता.
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता ....सत्य के करीब.....!!
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