Wednesday, December 14, 2011

निकानोर पार्रा : सत्य एक सामूहिक त्रुटि है

चिली के 'एंटी पोएट' निकानोर पार्रा हाल ही में स्पेन के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 'सर्वेन्टीज पुरस्कार' से नवाजे गए हैं. आज प्रस्तुत है उनकी कविता 'कुर्सी पर सोने वाले कवि की चिट्ठियाँ' के कुछ अंश...



कुर्सी पर सोने वाले कवि की चिट्ठियाँ : निकानोर पार्रा 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

बड़ा मुश्किल है भरोसा करना उस ईश्वर में 
जो छोड़ देता है अपने बच्चों को 
उनके हाल पर 
बुढ़ापे 
और बीमारी के तूफानों की दया पर 
मौत की तो कोई बात ही नहीं.  
:: :: :: 

मैं उन लोगों में से एक हूँ जो स्वागत करते हैं शव वाहनों का
:: :: :: 

यह तो जाहिर है 
कि कोई नहीं रहता चाँद पर 

कि कुर्सियां मेज हैं 
कि तितलियाँ हमेशा फड़फड़ाते रहने वाले फूल हैं 
कि सत्य एक सामूहिक त्रुटि है. 

कि आत्मा मर जाती है शरीर के साथ.

जाहिर है यह तो 
कि झुर्रियां दाग नहीं हैं. 
:: :: :: 

आसान नहीं मेरे लिए उदास होना 
ईमानदारी से कहूं तो  
कपाल देखकर भी मुझे आती है हँसी. 
क्रास पर सोया हुआ कवि 
आपका स्वागत करता है खून के आंसुओं के साथ. 
:: :: :: 

कवि का काम है 
कोरे कागज़ को बेहतर करना 
मुझे नहीं लगता कि मुमकिन है यह. 
:: :: :: 
Manoj Patel 

9 comments:

  1. आज सुबह ऐसी ही कविताओं की जरूरत महसूस हो रही थी.आभारी हूँ.

    ReplyDelete
  2. क्या स्वागत की जगह अगवानी ठीक रहता ?मूल नहीं देखा है ,फिर भी..

    ReplyDelete
  3. अद्भुत ..बहुत सुन्दर कवितायेँ ..

    ReplyDelete
  4. धन्यवाद आशुतोष सर, 'अगवानी' तो बेहतर शब्द लग रहा है.

    ReplyDelete
  5. ईश्वर पर भरोसा न करने से क्या बुढ़ापा नहीं आयेगा या रोग नहीं आएँगे...क्या ख्याल है ?

    ReplyDelete
  6. पहला अंश समझ सका और वह महत्वपूर्ण भी लगा। इस तरह का काम हर रोज आप कर रहे हैं, यह भी एक खास किस्म का काम है अन्तर्जाल पर। जारी रहे...

    ReplyDelete
  7. कवि का मंतव्य यह नहीं कि रोग, बुढ़ापा आदि से छुटकारा मिल जाएगा, ईश्वर में विश्वास खत्म होते ही. पहली सात पंक्तियां ईश्वर की करुणा विहीनता को ही उजागर करती हैं. यानि ईश्वर दुनियावी पिताओं से भी कम दयालु है, अपनी संतति के प्रति सरोकार-शून्य. मुझे अच्छी लगी कविता.

    ReplyDelete
  8. बहुत अच्छी कविता ....सत्य के करीब.....!!

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...