Tuesday, October 18, 2011

रॉबर्ट ब्लॉय : कुछ लोग

अमेरिकी कवि रॉबर्ट ब्लॉय की एक कविता...


कुछ लोग : रॉबर्ट ब्लॉय 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

कुछ लोग 
निकल जाते हैं हमारी ज़िंदगी से बाहर 
कुछ लोग दाखिल होते हैं हमारी ज़िंदगी में बिन बुलाए 
और बैठ जाते हैं 
कुछ लोग गुजर जाते हैं धीरे से
कुछ लोग आपको थमाते हैं एक गुलाब
या खरीदते हैं एक कार आपकी खातिर कुछ लोग
कुछ लोग आपके बहुत पास खड़े रहते हैं 
कुछ लोग एकदम भुला दिए जाते हैं आपसे 
कुछ लोग दरअसल आप ही होते हैं 
कुछ लोग जिन्हें आपने कभी देखा भी नहीं होता 
कुछ लोग साग खाते हैं 
कुछ लोग बच्चे होते हैं 
कुछ लोग चढ़ जाते हैं छत पर 
बैठ जाते हैं मेज पर कुछ लोग 
पड़े रहते हैं खाट पर 
टहलते हैं अपनी लाल छतरी के साथ 
कुछ लोग देखते हैं आपको 
कुछ लोग कभी ध्यान भी नहीं देते आप पर 
कुछ लोग अपने हाथों में लेना चाहते हैं आपका हाथ 
कुछ लोग मर जाते हैं रात में 
कुछ लोग दूसरे लोग होते हैं 
कुछ लोग आप होते हैं 
कुछ लोग नहीं होते अस्तित्व में 
कुछ लोग होते हैं 
                    :: :: :: 
Manoj Patel Translation, Manoj Patel Blog 

9 comments:

  1. 'कुछ लोग नहीं होते अस्तित्व में
    कुछ लोग होते हैं'. जिंदगी में लोगों की आवा-जाही पर एक आत्मीयतापूर्ण टिप्पणी, एक सहज कविता के रूप में.

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  2. Logon ka aur khud apne aap ka achchha vishleshan..

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  3. कुछ सरल रेखाएं
    सतरें खींचती हैं
    जोड़ती हैं शब्द
    नहीं होते उनके लिए अर्थ,
    एक सुनहली सरल रेखा
    हर सुबह चुपचाप
    झाँकती है खिड़की की झिर्रियों से
    जूझती है अभिशप्त अंधेरों से,
    अनंत आकाश में टूटता तारा भी
    छोडता है एक सरल रेखा
    मन ही मन बुदबुदाते हैं हम
    कोई प्रार्थना, कोई नाम..!
    (कुछ लोग सरल रेखाएं होते हैं )

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  4. लोग,लोग,लोग .....कई तरह के लोग ! कुछ तरह के लोगों के बारे में सुशीला जी भी बता रहीं हैं ! बेहतरीन अनुवाद मनोज जी !
    मुझे तो लगता है कि जितने लोग ,उतनी ही तरह के !

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  5. कुछ लोगों को गम सहने की इतनी आदत होती है
    खुशियाँ आकर दस्तक दें तो उनको दिक्कत होती है
    आँसूं आहें और तड़प ये उनके साथी होते है
    इन को पाल पोस कर रखना उनकी फितरत होती है
    खुशियों के चंद पल भी उनको होते बर्दाश्त नहीं
    ये सोच के भी वो रो लेते, के हम क्यूँ उदास नहीं
    ऐसे लोगों के संग रहना किसी के बस की बात नहीं
    वो जीवन बस कटा करते ,जीने में विश्वास नहीं
    खुशियों की अमृत वर्षा , ईश्वर तो हर दम करते है
    समझदार उसे पीते रहते और मुर्ख कहते, अभी प्यास नहीं.

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  6. आपकी इस पोस्ट को पढ़कर जाने क्यूँ एक पूरानी हिन्दी फिल्म का एक गीत याद आया "कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना "....
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_18.html

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  7. एक अच्छी कविता का अच्छा अनुवाद।
    इस समय (हिन्दी के) साहित्यिक इलाके में राबर्ट ब्लाय की चर्चा नोबेल पुरस्कार विजेता टॉमस ट्रांसट्रोमर की कविताओं के अनुवादक के रूप में खूब हो रही है लेकिन आपने उनके कवि पक्ष को सामने रखा । बहुत बढ़िया।

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  8. इस कविता को पढ़ते ही खुद से जुड़े वो बहुत सारे ’कुछ लोग’ याद आ रहे हैं --..

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  9. कहते हैं कि अगर एरिजोना में कोई तितली अपने पंख फडफडाती है तो वो घटना कई घटनाओं से होते होते, यूरोप में तूफ़ान का कारण भी बन सकती है, सोचता हूँ कि अगले स्टॉप में 'कुछ लोगों' में से किसी एक के बस रुकवाने से अतीत में कितने ही एक्सीडेंट बचे होंगे ! कितनी ही बार, 'आदि आदि के हाशिये' में होना इसलिए पसंद करते है ये कुछ लोग, ताकि आपकी जगह शिलालेख में बन सके. एक अनजान कहीं यू. एस. या अफ्रीका में बैठा आपके जीवन में कितना प्रभाव डालता होगा, सोचा है?

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