Sunday, November 13, 2011

नाओमी शिहाब न्ये की कविता


नाओमी शिहाब न्ये की एक कविता...



मशहूर : नाओमी शिहाब न्ये 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मछली के लिए मशहूर होती है नदी 
तेज आवाज़ मशहूर होती है खामोशी के लिए 
जिसे पता है कि वह ही वारिस होगी धरती की 
इससे पहले कि कोई ऐसा सोचे भी. 

चहारदीवारी पर बैठी बिल्ली मशहूर होती है चिड़ियों के लिए 
जो देखा करती हैं उसे घोंसले से. 

आंसू मशहूर होते हैं गालों के लिए. 

तसव्वुर जिसे आप लगाए फिरते हैं अपने सीने से 
मशहूर होते हैं आपके सीने के लिए. 

जूते मशहूर होते हैं धरती के लिए, 
ज्यादा मशहूर बनिस्बत भड़कीले जूतों के, 
जो मशहूर होते हैं फकत फर्श के लिए. 

उसी के लिए मशहूर होती है वह मुड़ी-तुड़ी तस्वीर 
जो उसे लिए फिरता है अपने साथ 
उसके लिए तो तनिक भी नहीं जो है उस तस्वीर में. 

मैं मशहूर होना चाहती हूँ घिसटते चलते लोगों के लिए 
मुस्कराते हैं जो सड़क पार करते, 
सौदा-सुलफ के लिए पसीने से लथपथ कतार में लगे बच्चों के लिए,
जवाब में मुस्कराने वाली शख्स के रूप में.

मैं मशहूर होना चाहती हूँ वैसे ही 
जैसे मशहूर होती है गरारी,
या एक काज बटन का,
इसलिए नहीं कि इन्होनें कर दिया कोई बड़ा काम,
बल्कि इसलिए कि वे कभी नहीं चूके उससे 
जो वे कर सकते थे...
                    :: :: :: 
Manoj Patel 

2 comments:

  1. जो कर सकते हैं वह करने से न चूकना... यही तो जीवन का उद्देश्य होना चाहिए!
    सुंदर कविता!

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