Thursday, December 22, 2011

चेस्लाव मिलोश : सूरज

चेस्लाव मिलोश की एक कविता...


सूरज : चेस्लाव मिलोश 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

सारे रंग आते हैं सूरज से. मगर उसका नहीं है 
कोई एक रंग, क्योंकि सारे रंग समाए हैं उसके भीतर.
और पूरी पृथ्वी है एक कविता की तरह 
जबकि ऊपर सूरज प्रतीक है कलाकार का. 

जो कोई भी रंगना चाहता है बहुरंगी दुनिया को 
उसे कभी मत देखने दो सीधे सूरज की तरफ 
वरना वह गँवा बैठेगा अपनी देखी हुई चीजों की स्मृति. 
केवल जलते हुए आंसू रह जाएंगे उसकी आँखों में. 

उसे घुटनों के बल बैठकर झुकाने दो अपना चेहरा घास की ओर, 
और देखने दो जमीन से परावर्तित प्रकाश को. 
वहां उसे मिलेंगी वे सारी चीजें जो हम गँवा चुके हैं : 
तारे और गुलाब, शाम और सुबहें तमाम.   
                                                                       वारसा, १९४८ 
                    :: :: :: 
manojpatel 

5 comments:

  1. "पूरी पृथ्वी है एक कविता की तरह..... वहां मिलेंगी उसे वो सारी चीज़ें जो हम गंवा चुके हैं....." ग़ज़ब रूपक बांधा है.

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  2. वाकई सूरज एक कलाकार है जो आकाश को नीला रंगता है और धरती को हरा...प्रकृति के निकटतम ले जाती हुई बहुत सुंदर कविता !

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  3. Bahut badhiya.. Reena Satin

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  4. पृथ्वी को कविता और सूरज को कलाकार का प्रतीक बताने वाली इस कविता में शायद यह सन्देश है की हमें महान लेखकों की सीधे नक़ल न करके अपनी जड़ों और समय से जुड़कर लिखना चाहिए.महान रचनाओं का अध्ययन जरूर करना चाहिए अपनी समझ विकसित करने के लिए.

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  5. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-737:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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