राबर्तो हुआरोज़ की एक और कविता...
राबर्तो हुआरोज़ की कविता
राबर्तो हुआरोज़ की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
कभी-कभी ऐसा लगता है
कि हम केंद्र में हैं किसी समारोह के.
लेकिन
कोई भी नहीं होता समारोह के केंद्र में.
समारोह के केंद्र में होता है शून्य.
मगर एक और समारोह होता है शून्य के केंद्र में.
:: :: ::
राबर्तो हुआरोस राबर्तो हुआर्रोज़ राबर्टो हुआर्रोज़
लेकिन
कोई भी नहीं होता समारोह के केंद्र में.
समारोह के केंद्र में होता है शून्य.
मगर एक और समारोह होता है शून्य के केंद्र में.
:: :: ::
राबर्तो हुआरोस राबर्तो हुआर्रोज़ राबर्टो हुआर्रोज़
this is beautiful..... incredible!
ReplyDeleteरहस्यमय सत्य और कितना सटीक!
ReplyDeleteआभार!
सुन्दर और सार्थक , बधाई.
ReplyDeleteआपका मेरे ब्लॉग meri kavitayen की नवीनतम प्रविष्टि पर स्वागत है.
एक अटूट सत्य...कोई नहीं केन्द्र में होता कभी भी कहीं भी...उसके सिवा...
ReplyDeletebilkul satik hai manoj bhai aapne to jabardast likha hai ,kya bat hai
ReplyDeleteसत्य......सर जी ....!!
ReplyDelete