Saturday, March 31, 2012

सेंसरशिप पर चार्ल्स बुकावस्की


१९८५ में एक स्थानीय पाठक की शिकायत पर नयमेंखन सार्वजनिक पुस्तकालय से चार्ल्स बुकावस्की की एक किताब 'टेल्स आफ आर्डिनरी मैडनेस' को "सैडिस्टिक, फासिस्ट और अश्वेतों, स्त्रियों एवं समलैंगिकों के प्रति भेदभावपूर्ण सोच रखने वाली" घोषित करते हुए हटा दिया गया. एक स्थानीय पत्रकार ने इस मसले पर बुकावस्की की राय जाननी चाही. जवाब में बुकावस्की ने यह पत्र भेजा: 

 
सेंसरशिप पर चार्ल्स बुकावस्की 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

२२-७-८५ 

प्रिय हांस वान देन ब्रूक:

नयमेंखन पुस्तकालय से मेरी किताब के हटाए जाने की सूचना देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. आपके पत्र से यह भी ज्ञात हुआ कि उस किताब पर अश्वेतों, स्त्रियों एवं समलैंगिकों के प्रति भेदभावपूर्ण सोच रखने का आरोप लगाया गया है, और परपीड़न-सुख के चित्रण के कारण वह परपीड़क है. 

जिस विषय पर पक्षपाती होने से मैं डरता हूँ, वह है हास्य-विनोद एवं सत्य. 

यदि स्त्रियों, अश्वेतों एवं समलैंगिकों के बारे में मैं बहुत खराब लिखता हूँ तो ऐसा इसलिए है कि जिनसे भी मैं मिला वे वैसे ही थे. दुनिया में बहुत सी 'बुरी चीजें' हैं - बुरे कुत्ते, बुरी सेंसरशिप; और "बुरे" श्वेत पुरुष भी. शिकायत केवल तब नहीं होती जब आप बुरे श्वेत पुरुषों के बारे में लिखते हैं. और क्या मुझे यह भी कहने की जरूरत है कि 'अच्छे' अश्वेत, 'अच्छे' समलैंगिक एवं 'अच्छी' स्त्रियाँ भी होती हैं? 

एक लेखक के रूप में मैं जो करता हूँ वह यह कि मैं जो भी देखता हूँ, शब्दों में उसकी तस्वीर भर उतार देता हूँ. यदि मैं 'सैडिज्म' के बारे में लिखता हूँ तो सिर्फ इसलिए क्योंकि वह मौजूद है, मैनें उसका आविष्कार नहीं किया और यदि मेरी किसी कृति में कोई भयावह कृत्य घटित होता है तो इसलिए क्योंकि ऎसी चीजें हमारे जीवन में घटित होती हैं. यदि ऎसी कोई चीज बुराई के रूप में प्रचलित हो तो मैं बुराई की तरफ नहीं हूँ. अपने लेखन में, जो कुछ भी घटित होता है, उससे मैं हमेशा सहमत नहीं होता, न ही मैं सिर्फ उसी के लिए कीचड़ में लोट रहता हूँ. मेरे लेखन की निंदा करने वाले लोग न जाने क्यों खुशी, प्रेम और उम्मीद से सम्बंधित अंशों को नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि ऐसे अंश मौजूद हैं. मेरे दिनों, मेरे सालों, मेरी ज़िंदगी ने काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं, अँधेरे और रोशनियाँ देखी हैं. यदि मैं लगातार सिर्फ "रोशनी" के बारे में ही लिखता और दूसरे पक्ष का कभी जिक्र भी न करता तो एक कलाकार के रूप में मैं झूठा होता. 

सेंसरशिप उन लोगों का औजार है जिन्हें अपने आप से और दूसरों से असलियत को छिपाने की जरूरत होती है. उनका डर महज सच्चाई का सामना करने की उनकी असमर्थता है और मैं उनके विरुद्ध कोई नाराजगी नहीं प्रकट कर सकता. मैं तो बस इस भयावह उदासी से घिर गया हूँ. उनकी परवरिश में कहीं न कहीं, उन्हें हमारे अस्तित्व की समस्त सच्चाइयों से बचाकर रखा गया. जब तमाम पहलू मौजूद थे तब उन्हें सिर्फ एक पहलू को देखना सिखाया गया.   

मैं हताश नहीं हूँ कि मेरी एक किताब को नुकसान पहुंचाया गया है और एक स्थानीय पुस्तकालय की आल्मारी से उसे हटा दिया गया है. एक तरीके से मैं सम्मानित महसूस करता हूँ कि मैनें ऐसा कुछ लिखा है जिसने इन्हें अपनी आरामदेह जड़ता से जगाने का काम किया है. मगर हाँ, मुझे तब पीड़ा होती है जब किसी और की किताब को प्रतिबंधित किया जाता है और जो सामान्यतः महान किताब होती है. ऎसी बहुत सी किताबें हैं जिन्होनें समय के साथ क्लासिक का दर्जा प्राप्त कर लिया है और जिसे कभी अप्रीतिकर एवं अनैतिक माना जाता था उन्हें अब हमारे तमाम विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने की जरूरत महसूस होती है.  

मैं यह नहीं कह रहा कि मेरी किताब भी उसी दर्जे की है, बल्कि मैं यह कह रहा हूँ कि हमारे दौर में, इस पल जबकि कोई भी पल हममें से बहुतों का आखिरी पल साबित हो सकता है, यह अत्यंत कष्टकर और अत्यधिक उदास कर देने वाला तथ्य है कि अब भी हमारे बीच तुच्छ, तिक्त, कुतर्की और मानवता व संस्कृति के तथाकथित रक्षक लोग मौजूद हैं. यद्यपि वे भी हमसे ही जुड़े हुए हैं और समूची दुनिया का एक हिस्सा हैं, और यदि मैनें उनके बारे में न लिखा होता तो मुझे लिखना चाहिए था, शायद यहीं, और यही काफी है. 

हम सभी साथ-साथ बेहतर हों, 
आपका,
 
(दस्तखत)
चार्ल्स बुकावस्की 

4 comments:

  1. स्पष्ठ , बेबाक, प्रेरक .

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  2. सेंसरशिप पर बेबाक और बेलौस ढंग से लिखा गया आलेख.

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  3. MANTO ALSO SAID SAM WORLD WHEN COURT ASK HIM ABOUT HIS STORIES

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